पानी रे, पानी तेरा रंग कैसा

पानी शुद्ध पी रहे हैं या अशुद्ध, इस पर भी कहां भरोसा होता है?

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डॉ योगेन्द्र

भागलपुर में दो दिनों से गंगा संवाद हो रहा है। दो दिन यानी १४-१५ सितंबर। ज्यादातर गंगा मुक्ति आंदोलन से जुड़े साथी हैं। दिल्ली, झारखंड, बंगाल से आए हैं। बिहार के तो हैं ही। कई जिले के करीब पचास साथी हैं। पहले दिन खुला सत्र था। जिनको जो समझ में आ रहा है, उन्होंने अपनी बात कहीं । केवल एक के निर्देश था कि केंद्र में नदियां होनी चाहिए। नदियां कोई व्यवस्था से अलग तो हैं नहीं। व्यवस्था नदियों के खिलाफ है। वह जिससे विकसित हुई, उसी के कंधे पर वह सवार हो गयी है। व्यवस्था ऐसी ही चलती रही तो नदियों को बचाना क्या संभव है? युधिष्ठिर के सामने आया यक्ष प्रश्न से भी बड़ा प्रश्न है। नदी, पानी, जंगल, वन पर गहरा संकट है। अडानी को फायदा पहुंचाने के लिए हसदेव जंगल के हजार एकड़ में बरसों बरस से पले बढ़े पेड़ काटे जा रहे हैं। और देश में पर्यावरण दिवस पर अदद पेड़ रोपने और तस्वीरें खिंचवाने का ड्रामा चल रहा है।

पानी शुद्ध पी रहे हैं या अशुद्ध – इस पर भी कहां भरोसा होता है? पहले कुएं का पानी काफी होता था। मेरे गांव में कई कुएं थे। एक खास था । उसका नाम बुढ़वा इनारा था। यह कुआं सार्वजनिक था। सब कोई पानी भरते, उसके पाट पर कपड़े धोते। उसका पानी इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि उसके पानी से दाल सीझ जाती थी। अन्य कुएं से दाल अधकचरी रह जाती थी। मेरे घर के आंगन में एक कुआं था जिससे हम लोग पानी पीते थे, लेकिन दाल सिझाने के लिए पानी बुढ़वा इनारा से ही आता था।‌कुछ महीने पहले मैं गांव गया था तो बुढ़वा इनारा की हालत देखी। वह अभी है, लेकिन अब कोई उससे पानी नहीं भरता। उसमें खर पतवार, सड़ी वस्तुएं आदि पड़ी थीं। पाट पर कोई नहीं आता। मेरे घर के कुएं का पानी भी कोई नहीं पीता। पीने के लिए डिब्बे वाला पानी बाहर से आता है। तीस पैंतीस वर्षों में मेरे कुएं का पानी इतना गंदा कैसे हो गया कि वह पीने लायक नहीं रहा, यह पता नहीं चला। पूरे गांव का प्यारा बुढ़वा इनारा कैसे इतना उपेक्षित हो गया कि कोई उसको पूछता तक नहीं है?

गांव के हर घर में या तो आरो है या डिब्बे का पानी। धरती के पानी का दो ही उपयोग है – या तो बाथ रूम में या फिर सिंचाई में।
धरती के पानी के बारे में गजब भ्रम फैलाया गया है। वह पीने लायक नहीं है, गंदा है, उससे बीमारी होती है। बोतल का पानी शुद्ध होता है। आरो सभी गंदगी को निकाल देता है। शादी या किसी समारोह में बोतल बंद पानी नहीं है तो फिर उसकी शोभा घट जाती है। नतीजा है कि बड़े बड़े पूंजीपति पानी को बंद करने पर कूद पड़े हैं। अरबों का बिजनेस है जनता का पैसा पूंजीपतियों की जेब में सरक कर जा रहा है। गजब का खेल ज्ञान – अज्ञान के बीच चल रहा है। लोग कहते हैं कि बोतल बंद कतई शुद्ध नहीं है और स्वास्थ्य के लिए बहुत माकूल नहीं है। परंपरागत पानी में जो स्वास्थ्यकारक मिनरल पदार्थ था, उससे शरीर की सुरक्षा होती थी। अब कई तरह की बीमारियां हो रही हैं जिसमें पानी जनित बीमारियां कम नहीं हैं। ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में पानी को लेकर भयावह टकराव होने वाला है।

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