रोटी से बड़ा कोई धर्म नहीं होता

सच्चा धर्म वह मानवीय मूल्य बोध है जो बिना किसी भेदभाव के सबको गले लगाता है

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ब्रह्मानंद ठाकुर
हमारे एक कवि मित्र नर्मदेश्वर चौधरी की एक ग़ज़ल है। पहले उसकी कुछ पंक्तियां —-

“भूखे से भगवान की बातें !
छोड़ यार, ये ज्ञान की बातें !!
पहले हाथ में रोटी तो रख,
फिर करना ईमान की बातें !!
सिर्फ सियासत ही करती है,
गीता और कुरान की बातें !!”

यह सब लिखते हुए मुझे मार्क्सवादी कहा जा सकता है। मुझे पर नास्तिकता का ठप्पा भी लग सकता है लेकिन सच्चाई तो सच्चाई है। उससे मुंह मोड़ा तो नहीं जा सकता? रोटी मनुष्य की पहली आवश्यकता है। वंदे उदरम् मातरम्। इसीलिए तो पहले भूखे को रोटी देने, फिर धर्म की बात करने की सलाह स्वामी विवेकानन्द भी दे चुके हैं। विवेकानन्द ने कहा था, मैं ऐसे भगवान में विश्वास नहीं करता, जो हमें इह लोक में रोटी नहीं दे सकता, मगर वह हमें मरने के बाद स्वर्ग में चिरंतन स्वर्गिक सुख प्रदान करेगा।

भूखे को भोजन न दे कर, मंदिरों में पूजा-अर्चना में व्यस्त रहने वालों की भर्त्सना करते हुए उन्होंने कहा, करोड़ों खर्च कर काशी, मथुरा, वृंदावन में देवता के कमरों के दरवाजे खुल रहे हैं और बंद हो रहे हैं। एक देवता कपड़े बदल रहे हैं, तो दूसरे देवता भोजन कर रहे हैं। तीसरे देवता दुष्टो के वंश का नाश कर रहे हैं। इधर असली देवता अन्न और ज्ञान के बिना मर रहे हैं।(स्वामी विवेकानंद वाणी और रचना सप्तम खंड)। विवेकानन्द ने यह भी कहा था कि हम मानव जाति को उस स्थान पर ले जाना चाहते हैं, जहां वेद नहीं होगा, बाइबिल नहीं होगी, कुरान नहीं होगा। यह काम वेद, बाइबिल और कुरान के समन्वय से पूरा होगा। उनका कहना था, हम सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु भाव ही नहीं रखते, बल्कि सभी धर्मों को सत्य मानते हैं। विवेकानन्द के गुरु रामकृष्ण परमहंस ने भी मस्जिद में नमाज पढ़ी थी। चर्च में प्रार्थना की थी और मां काली की पूजा भी की थी। उन्हें हिंदु धर्म का सच्चा प्रतिनिधि माना गया है।

सच्चा धर्म वह मानवीय मूल्य बोध है जो बिना किसी भेदभाव के सबको गले लगाता है। धर्म का असली मर्म चैतन्य महाप्रभु, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द जैसे महापुरुषों से सीखने की जरूरत है। आज धर्म सत्ता प्राप्ति का हथकंडा बन चुका है।अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए राजनीतिक दल धर्म की आड़ लेकर जनता को गुमराह कर रहे हैं। सत्ताधारी पूंजीपति वर्ग अगड़ा-पिछड़ा, हिंदु-मुस्लिम, सवर्ण-दलित, ऊंच-नीच की भावना भड़काने का काम इसलिए कर रहा है कि वह अपने वर्ग हित मे वर्तमान शोषण मूलक व्यवस्था को बनाए रख सके। आज आम आवाम को धर्म में छिपे उसके इसी संदेश को समझने की जरूरत है। क्योंकि धर्म के नाम पर आपस में लड़ने से उसका अपना ही नुकसान होता है।

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए The Dialogue उत्तरदायी नहीं है।)
there-is-no-religion-greater-than-bread-swami-vivekananda
Brahmanand Thakur
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