राजनीति की लहक और बहक
हर दिन का मिज़ाज अलग होता है । उसके रंग रूप भी अलग-अलग । मन का प्रवाह भी और सड़कों पर दौड़ती भागती गाड़ियों के भी। मन जैसा रहता है ।सड़कों के रंग भी वैसे रहते हैं । महीने से ज़्यादा हो गये राँची में। सड़कों के नाम , इलाक़े और जगहें- जानी पहचानी सी लगने लगी हैं । हर रोज़ अख़बार पढ़ लेता हूँ । अख़बारों में हेमंत सरकार ने कैसे ख़ज़ाने खोले हैं और बीजेपी ने कैसे उसको घेरने का प्रयास किया है, पढ़ता रहता हूँ । केंद्र के कृषि मंत्री और असम के मुख्यमंत्री ने तो जैसे राँची में ही लंगर डाल दिया है । कृषि मंत्रालय को शायद मंत्री की ज़रूरत नहीं है। उनके अफ़सर ही मंत्री हैं। वही देख रेख करते हैं।केंद्र सरकार फ़िज़ूल मंत्री बनाती रहती है । उनकी हैसियत कुल मिलाकर अदद लेबर की है। रानी मख्खी की सेवा ही उनका कर्तव्य है।इसलिए अब मंत्री की बहुत ज़रूरत नहीं है। जैसे सड़क पर मलबा गिरा रहता है और पीछे से साफ़ करने के लिए लोग आते हैं, क्योंकि चमकती गाड़ियों को अच्छी राह चाहिए । वैसे ही अड़ानी अंबानी के बिज़नेस के लिए झारखंड चाहिए । यहाँ ज़मीन भी है, संसाधन भी। दोनों सफ़ाईकर्मी हैं और झारखंड सरकार को इन्होंने कूड़ा समझ रखा है। वे लगे हुए हैं । जब तब टपकते रहते हैं । वे अपना काम करते नहीं । खेती त्राहि त्राहि कर रही है और हुज़ूर बेलचा लेकर झारखंड में पड़े हैं।
उस पर कोई योजना नहीं है। एक ही योजना है कि झारखंड में पदार्पण करते ही बयान ठोक देना है कि यहॉं बंगला देशी मुसलमान बहुतायत से आ गये हैं। लगता है कि जहॉं जहॉं बीजेपी सरकार में है, वहाँ से उसने चुन चुन कर बंगला देशी मुसलमानों को निकाल दिया है । उस पर बंगला देश का बॉर्डर झारखंड से जुड़ा नहीं है। असम से भले जुड़ा है। आ रहे हैं तो जवाबदेही किसकी है? गृहमंत्री क्या पेटकुनिया देकर सोये हैं? वे उनसे सवाल जवाब क्यों नहीं करते? मगर वहाँ तो दोनों मुलाजिम हैं।उनके सामने नौकर से भी बदतर स्थिति है। दरबारी जैसे दरबार में ठिठियाते रहते हैं, हुज़ूर हुज़ूर कह कर तलबे चाटते हैं, इतनी ही हैसियत है। जिस गृहमंत्री ने हेमंत बिस्वा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये, बीजेपी ने उसपर काले कारनामों को लेकर पुस्तिका निकाली , वही उन्हें झारखंड में जिताऊ दूत बनाकर भेज दिया है। जैसे ही झारखंड आते हैं । अपना सुभाषित उच्चारने लगते हैं । हिन्दू हिन्दू करके राजनैतिक बाज़ार में ठगी का धंधा बहुत दिन नहीं चलने वाला? अब तो सवाल करना ही चाहिए कि आप लोगों ने हिन्दुओं को क्या दिया? उनके पुत्रों को क्या बनाया? उन्हें नफ़रत की सीख दी ,गौरक्षक बनाया और अपने पुत्र को क्रिकेट का महारथी । जिसने कभी बल्ला नहीं पकड़ा । वह सीढ़ियाँ चढ़ता गया । हिन्दुओं के बच्चों को इतना भी नहीं किया कि नौकरियों के जो ख़ाली पद हैं, उन्हें भर दें। ढोल की पोल एक दिन खुलती ही है। धीरे-धीरे लोग उन्हें पहचानने लगे हैं ।
झारखंड के अख़बारों में एक खबर है-‘ कार में भाजपा का बोर्ड लगा घूम रहे दो युवकों ने दारोग़ा को पीटा।’ कार पर बोर्ड लगा था – भाजपा प्रदेश कार्य समिति ( अनुसूचित जनजाति मोर्चा) । युवक के नाम हैं- रविरंजन लकड़ा और विनोद लकड़ा । चलिए, नौनिहाल अच्छा काम कर रहे हैं । किसी को पीट तो रहे हैं । पार्टियों की तो अजीब कथा है। संवेदनशील कार्यकर्ताओं की भारी कमी है। वे कार्यकर्ताओं को चुनाव के समय याद करते हैं । उन्हें ढंग की ट्रेनिंग नहीं देते। बिहार में तेजस्वी यादव जवान हैं। उन्हें चाहिए था कि पार्टी में ट्रेनिंग का कार्यक्रम चलायें, मगर नहीं, वे भी हवा पर ही चलते हैं । चुनाव आया। कमर कस कर भिड़ गये। चुनाव के बाद पटना में शिफ़्ट कर गये। प्रशांत किशोर ने दावा किया है कि अगला सीएम जन सुराज का होगा। वे बराबर तेजस्वी यादव की डिग्री पर सवाल करते हैं । प्रशांत किशोर क्या इतना भी नहीं जानते कि विधायक या सांसद होने के लिए क्या योग्यताएँ हैं? काम पर बहस कीजिए । डिग्री पर अनाप-शनाप बोलना संविधान विरोधी रवैया है। वे प्रधानमंत्री के साथ भी रहे।उन्होंने कभी उनकी डिग्री के बारे में पूछा? दरअसल यह फ़िज़ूल सवाल है। सवाल वही कीजिए जो लोकतंत्र को स्वस्थ करे। डिग्री धारी बहुत अच्छे होते तो बड़े बड़े पदों पर तो डिग्री धारी ही बैठे हैं।