बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाए ?

करमी पूर्ण नवयौवना बन अपने हल्के गुलाबी फूलों को गोद मे लिए विहंसते हुए किसानों से जो कहती हैं

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ब्रह्मानंद ठाकुर
करमी को पहचानते हैं? कभी देखा है कही? नहीं देखे हैं तो आइए मेरे साथ। मैं आपको लिए चलता हूं गांव के चौर में। चौर उस जगह को कहते हैं जहां साल में छह महीना जल-जमाव रहता है। वह देखिए, वहीं है करमी का लत्तर। अपने सुनहरे गुलाबी फूलों के साथ चौर क्षेत्र में पानी के ऊपर दूर-दूर तक पसरा, मुस्कुराता करमी का लत्तर। मैंने पहले ही बता दिया है कि साल में छह महीना इस जमीन में जल-जमाव के चलते कोई खेती नहीं होती। जल जमाव हटते ही फागुन, चैत में किसान ऐसी जमीन को जोत-कोर कर धान, मूंग और जनेरा बो देते हैं। ऐसा करते हुए वे किसान करमी के लत्तर को खूब अच्छी तरह उजाड़ कर खेत को साफ कर देते है। ऐसे कि कहीं भी करमी का छोटा लत्तर भी नजर न आए। जो बचता है उसे भेंड़ बकरियां चट कर जातीं हैं। बाबजूद इसके मिट्टी के अंदर उसका कुछ अस्तित्व बचा रह जाता है।
वैसाख-जेठ की भीषण धूप और गर्मी में जब मूंग और जनेरा की फसल झुलस कर बर्बाद हो जाती है, धान का कोमल पौधा दम तोड़ने लगता है, तब इस कर्मी का अंखुआ जमीन से बाहर निकलता है। अति मुलायम अंखुआ। हंसता-मुस्कुराता। चरवाहे जब यह सूचना  अपने घरों में देते हैं तब गांव की नन्हीं-नन्ही बच्चियां, महिलाएं और वृद्धाएं पहुंच जातीं हैं चौर में करमी का साग तोड़ने। क्योंकि करमी के साग का इन्हें सालभर इंतजार रहता है। मक्के की रोटी और करमी का साग! कितना स्वादिष्ट होता है! गृह प्रवेश मे करमी के साग का बड़ा महत्व है। आखिर कितनी जीजिविषा है, करमी मे! भेड-बकरिया इसे पूरी तरह चर गई। किसान ने जोत-कोर कर जड़मूल से नष्ट कर दिया। फिर भी यह जीवित रही। सिर्फ जीवित ही नहीं, अपनी पूरी ताकत से साल दर साल बंजर धरती का कलेजा फाड़ कर खुद को विस्तार देती रही। बिना किसी शस्य क्रिया, उर्वरक और सिंचाई सुविधाओं के। फिर अगहन आते ही यह करमी पूर्ण नवयौवना बन अपने हल्के गुलाबी फूलों को गोद मे लिए विहंसते हुए किसानों से जो कहती हैं, वहीं आज के इस ठाकुर के कोना का सार है। इसे कवि रामजीवन शर्मा जीवन ने अपनी कविता ‘करमी के फूल’ मे इन शब्दों में व्यक्त किया है —
‘तुमने तो अपनी ताकत
भर नाश कर दिया मेरा
और, लाडले अपने शस्यों
को चाहा चमकाना
किंतु क्या हुआ, चला
तुम्हारा वश, कुछ मेरे आगे
मैं ज्यों की त्यों खड़ी तुम्हारे
सम्मुख फिर अगहन मे
दोस्त, इसी का नाम जिंदगी
है, तुम झंखो न ज्यादा।’
करमी सर्वहारा है। उसे जड़मूल से मिटाने वाले शोषकों के लिए उसका संदेश स्पष्ट है। जीजिविषा उसकी ताकत है और अदम्य साहस उसका प्रतिकूल परिस्थितियों से लडने का हथियार। वह दिन दूर नहीं जब विश्व का सर्वहारा शोषकों को अपनी गिरफ्त में ले कर, उसकी आंख मे आंख डाल कर पूछेगा, मेरी बदौलत ही तूने खुद का और अपने नाते-रिश्तेदारों का भला किया। मुझे रौंदते रहे। मेरा रक्त चूसते रहे। इतना होने पर भी मेरी जीजिविषा कायम रही। अब मैं तन कर खड़ा हूं ‘बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाए?’
Water spinach
Brahmanand Thakur    
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए The Dialogue उत्तरदायी नहीं है।)
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