उन्होंने ज्यादातर शैक्षणिक कार्य भागलपुर विश्वविद्यालय में ही किया। दो वर्ष शांतिनिकेतन में रहे और पांच वर्ष हुम्बोल्ट विश्वविद्यालय, जर्मनी में विजिटिंग प्रोफेसर रहे।
एक ऐसी दुनिया, जहाँ लोगों की आवाज़ न केवल सुनी जाती है, बल्कि वह सीधे तौर पर इस बात को प्रभावित करती है कि संसाधनों का प्रबंधन कैसे हो, करों का आवंटन कैसे किया जाए, और सार्वजनिक सेवाओं का वितरण कैसे किया जाए।