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समाज को आज जरूरत है एक अदद ‘सूरदास ‘की

किसी रचनाकार की कृतियों का सही मूल्यांकन उसके समय की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पृष्ठ भूमि को नजर अंदाज कर नहीं किया जा सकता। लेखक ने जिन राजनीतिक-सामाजिक परिस्थितियों में इस उपन्यास को लिखा है, वह देश के आजादी आंदोलन का दौर था।

सत्ता विरोधी लहर के साथ भीतरी कलह से भी जूझती भाजपा

भारतीय जनता पार्टी की ओर से पिछले दिनों चुनाव प्रचार के दौरान ही कई ऐसे संकेत मिले जो पार्टी नेताओं के मतभेदों को स्पष्ट रूप से उजागर करने वाले हैं

गोबर लपेसने के यज्ञ में बूढ़े

कोरोना देश में फैला था तो लोग दहशत में थे। आदमी-आदमी के पास नहीं जाना चाहता था। किसी को छींक हुई कि लोग भयभीत हो जाते थे। लगता था कि कोरोना दस्तक दे रहा है। ऐसे मौसम में बहुत से ज्ञानी जनम ले लेते हैं।

भाजपा: भगवती जागरण पार्टी !

राजनीति को पहले अपना धर्म निभाना चाहिए। जो काम मठ और मंदिर का है, साधु और महात्मा का है, वह काम सरकार न करे। अधार्मि-आचरण लेकर अधार्मिक-अभियान में शामिल होना अशोभनीय है, इसे कतई सराहा नहीं जा सकता है।

आओ, पार्टी-पार्टी खेलें

पूंजीवादी अर्थनीति के चरित्र से नावाकिफ रहने वाले इसे नहीं समझ पाएंगे, अर्थनीति व्यवस्था क्रांति से बदलती है चुनाव से नहीं..