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आ, अब लौट चलें प्रकृति की गोद में

कुत्सित भाव हमें अपनी ममतामयी मां, प्रकृति की गोद से धीरे-धीरे दूर करता चला गया। हम भूल गये प्रकृति मां की लोड़ियां और थपकियां दे-दे कर हमें चैन की नींद सुलाना।

अब नहीं आता गुलाब छड़ी बेचने वाला जोखन

सामने की सड़क पर दो-तीन छोटे बच्चे साइकिल से प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ लगा रहे थे। उनमें एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ थी। वैसे भी मनुष्य का जीवन आजकल एक-दूसरे को पछाड़, आगे निकल जाने की होड़ को समर्पित हो चुका है। बच्चे क्यों अपवाद बनें?