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सुग्गे, साँझ और बारिश

शहर में साँझ उतरने का अहसास बहुत कम होता है। मैंने उतरती साँझ को क़रीब से महसूस किया है। जब गाँव में था, तो पिता बूंट ( चना) की रखवाली के लिए खेतों पर भेजते थे। होता यह था कि बूंट जब पकने को होता तो साँझ के समय झूंड के झूंड सुग्गे खेतों में…