जयंती विशेष: गांधी को याद करते हुए
बापू आप सच में महान थे, आपका चरित्र और नैतिक बल काफी ऊंचा था
ब्रह्मानंद ठाकुर
बापू ! आज 2अक्टुबर है। आपकी 155वीं जयंती। देश भर में आज के दिन आपको याद करने की, आजादी आंदोलन में आपके योगदान की चर्चा करने की, आपके आदर्शों पर चलने वास्ते कसमे खाने की धूम मची है। आपके नाम का कीर्तन करते, आपके सिद्धान्तों के विरुद्ध आचरण करने वाले लोग भी उछल-उछल कर आज आपकी तस्वीरों पर पुष्पांजलि अर्पित कर रहे हैं। आपको आजाद भारत के वे नौकरशाह भी याद कर रहे हैं, जिनके एयरकंडीशन्ड दफ्तर में आपका ‘अंतिम जन’ अपना वाजिब हक मांगने के लिए चिथड़े पहने कांपते पैरों खड़ा रहता है।
बापू ! आपको दफ्तरों के वे बाबू भी याद कर रहे हैं जिन्होने गरीबों को दोनों हाथ से लूटने को अपना अधिकार मान लिया है। आपको आजाद भारत के आधुनिक रहनुमा भी याद कर रहें हैं जिनके घरों से बरामद रुपये गिनने वास्ते मशीनें मंगाईं जाने लगी हैं। ऐसों के बारे में कुछ भी लिखने से मुझे बड़ा डर लग रहा है। आपने तो सच्चाई पर डटे रहने, उसके लिए हर कुर्बानी देने को तैयार रहने की बात कहीं थी। वैसा ही आपने किया भी। बापू ! यह देख कर मन बड़ा आहत हो रहा है कि आज के दिन आपको याद करने वालो की फेहरिस्त में वे लोग शामिल नहीं हैं, जिनके भले की बात आप आजीवन करते रहे। खेत-खलिहान में मरने-खपने वाले किसान,12 घंटे कारखानों में खटने वाले मजदूर, शोषित-पीडित दलित (जिसे आप हरिजन कहा करते थे) बेरोजगार युवा, स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे। ये सब आपको याद करने वालों की फैहरिस्त में शामिल नहीं हैं। जानते हैं क्यों ? सुविधा भोगियों ने आम जनता से आपको स्नैच कर लिया है। अन्य राष्ट्र भक्त महापुरुषों की तरह ही। बापू ! सच में आप कालजयी पुरुष हैं। निष्ठा, त्याग, ईमानदारी, सत्यवादिता,और निर्भीकता के प्रतीक। आपने जो कुछ भी कहा,उसे पहले खुद के जीवन में कार्यरूप में बदला। लेकिन आपके अनुयायियों में कथनी और करनी का फासला लगातार बढ़ता गया। आप सहनशीलता के जीवंत प्रतीक रहे। आप कहते थे, कोई तुम्हारे एक गाल पर एक थप्पड़ मारे तो झट उसके सामने अपना दूसरा गाल बढ़ा दो। आप अहिंसक थे, मगर किसान-मजूरों वाली लाठी रखा करते थे। आज आपके देश में ही आपके अनुयायी तमंचा लिए अंगरक्षकों की सुरक्षा में चल रहे हैं। आज के दिन वे भी आपको याद कर रहे हैं।
बापू ! आज के दिन मैं भी आपको याद कर रहा हूं। मुझे आपसे कुछ शिकायतें है। मैं वह शिकायत बड़ी विनम्रता के साथ निवेदित कर रहा हूं। हो सकता है मेरी यह हिमाकत आपके छद्म अनुयायियों को बुरा लगे। लगता है तो लगे। अनुयायियों द्वारा अपने नेताओं के ऐसे ही प्रशस्ति गान से तो आपके प्यारे हिंदुस्तान की यह दशा हो रही है बापू। आपके ग्राम स्वराज और स्वावलंबन के सपनों को इन्होने ही तार-तार कर दिया है। आपसे अनजाने में कुछ भूल हो गई बापू ! आपने अपनी धारणाओं और विश्वास के आधार पर वर्ग संघर्ष को अस्वीकार कर दिया। आपने वर्ग सम्बंधी अवधारणाओं को ध्यान में न रखते हुए जिस वर्ग समन्वय की बात कही, वह विज्ञान की कसौटी पर फेल हो चुकी थी। आपने अनजाने में ही सही (जबकि आपका उद्देश्य व्यापक जन हित का था), अपनी जिस चिंतन धारा और कार्य पद्धति से जिस वर्ग के चिंतन तथा स्वार्थ को प्रतिबिंबित किया, वास्तव में वह हमारे देश का पूंजीपति वर्ग ही था। आपकी इस चिंतन धारा को पूंजीपतियों ने अपने वर्गीय चिंतन के सहारे खूब अच्छी तरह से समझ लिया था। जानते हैं बापू? इसीलिए इस वर्ग ने आपकी भरपूर मदद की थी। वे समझ गये थे कि इसमें उनका कोई नुक्सान नहीं। लाभ ही लाभ है। यही लाभ वे आज भी उठा रहे हैं। नुकसान तो उन्हें हो रहा है जिनके भले के लिए आपने अपना सर्वस्व त्याग दिया था। ऐसा ही होता है बापू !
वर्ग चेतना न रहने से किसी भी प्रतिभावान व्यक्ति के लिए ऐसा होना असम्भव नहीं है। बापू ! आप सच में महान थे। आपका चरित्र और नैतिक बल काफी ऊंचा था। इतना ऊंचा कि आपके चेले आपके पद रज भी नहीं पा सकते। आपकी जयंती पर मेरी यही शिकायत थी बापू, जिसे मैं आदर पूर्वक आपको निवेदित कर रहा हूँ।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए The Dialogue उत्तरदायी नहीं है।)