महान गुरु राधाकृष्ण सहाय की जयंती : स्मरण

"जालीदार पर्दे की धूप " और  "दार्जिलिंग में एक लड़की रहती थी" - उनके दो कहानी संग्रह हैं।

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डॉ योगेन्द्र
कई लोग ऐसे होते हैं जो चुपचाप काम करते हैं और धरती से विदा हो जाते हैं। इनमें से एक थे – प्रो. राधाकृष्ण सहाय, मेरे जैसे सामान्य घर से आये छात्र। इनके छात्रों में मैं अकेला नहीं था। यह अलग बात है कि सबको लगता था कि सर मेरे ही करीब हैं। मैंने भागलपुर विश्वविद्यालय में एम ए कक्षा में नामांकन करवाया तो उनसे मुलाकात हुई। यह मुलाकात ताउम्र गाढ़े संबंध में परिणत होती गई। आज इस महान शिक्षक का जन्म दिन है। 24 सितंबर 1927 को छपरा में इनका जन्म हुआ। आज के ही दिन उन्होंने 2015 में एक पत्र लिखा था-
योगेन्द्र,
यात्रा के दौरान बहुत लोगों से भेंट होती है।‌ कुछेक के साथ संबंध अनजाने/ अप्रत्यक्ष रूप से गाढ़ा हो जाता है। कहना न होगा कि जीवन यह यात्रा है। 24 सितंबर 2015 को मैं 88 वर्ष में प्रवेश कर जाऊंगा।
कर्तव्य बोध के निमित्त मैं एक छोटा चेक भेज रहा हूं। पिंकू के विवाह के संबंध में। चेक पर अपना नाम/ तिथि भर लेना।
स्नेह
रा. कृ. सहाय
यह चेक ग्यारह हजार रुपए का था। अभी भी यह अविस्मरणीय चेक यों ही फाइल में पड़ा है।‌ अपने अनेक छात्र छात्राओं पर स्नेह की वर्षा करते रहे। मैंने उनके निर्देशन में पीएच-डी की डिग्री पायी है। जब मैं पीएच- डी कर रहा था तो बेरोजगार था। थीसिस पूरी हुई। उन्होंने मुझे बुलाया और हाथ में पीएच- डी थीसिस टंकण के लिए रूपये देने लगे। मैंने मना किया तो उन्होंने प्रेम से कहा कि अगर नौकरी कर रहे होते तो पैसा नहीं देता।‌ हर बेरोजगार छात्र-छात्राओं को थीसिस टंकण का पैसा देता हूं। इसके बाद कहने के लिए कुछ बचा नहीं था। मैंने पैसे लिए और पीएच- डी की थीसिस टाइप करवायी। मौखिकी में हैदराबाद और मुजफ्फरपुर से प्रोफेसर आये थे।‌उन्होंने उन्हें अपने घर में रखा और अपने साथ विभाग लेते आये और मुझे निर्देश दिया – सिर्फ चाय और बिस्कुट ही देना है। वही हुआ और मुझे डिग्री मिल गई।
ऐसे शिक्षक को आखिर कौन भूलेगा? उन्होंने ज्यादातर शैक्षणिक कार्य भागलपुर विश्वविद्यालय में ही किया। दो वर्ष शांतिनिकेतन में रहे और पांच वर्ष हुम्बोल्ट विश्वविद्यालय, जर्मनी में विजिटिंग प्रोफेसर रहे। जर्मनी में उन्हें जो अनुभव हुआ, उसके आधार पर ‘ फिर मिलेंगे ‘ नामक संस्मरणात्मक पुस्तक लिखी। यह एक अद्भुत किताब है। स्थानीय प्रकाशक ने इसका प्रकाशन किया।इस वजह से वितरण ठीक से नहीं हुआ। उन्होंने दो महत्वपूर्ण नाटक लिखे – अतः किम् और खेल जारी खेल जारी । इसके अलावे हे मातृभूमि कई एकांकी का संग्रह है। “जालीदार पर्दे की धूप ” और  “दार्जिलिंग में एक लड़की रहती थी” – उनके दो कहानी संग्रह हैं। उनकी कहानियां हंस, पाखी, वागर्थ, संवेद आदि में लगातार छपती रही। उन्होंने बारह नाटकों का मंचन किया। छोटी सी जगह में उनका जिक्र करना संभव नहीं है। लेकिन एक घटना सुनाकर अपनी बात खत्म कर दूंगा। मशहूर निर्देशक विमल राय ने चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘ उसने कहा था ‘ पर फिल्म बनायी थी। सर उस फिल्म को देखकर नाराज़ थे। उन्होंने विमल राय से संपर्क किया और कहा कि अमुक तिथि को भागलपुर आइए। मैं आपको दिखाता हूं कि उसने कहा था कहानी में क्या है? सी एम एस स्कूल के मंच पर इस कहानी का मंचन हुआ और उसमें विमल राय शामिल हुए। एक समय ‘सप्तम स्वर‘ पत्रिका का संपादन किया जिससे ट्रेनिंग पाकर ख्यातिप्राप्त साहित्यिक, पत्रकार हुए।

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