माता कुमाता न भवति ?
पिछले हफ्ते मुजफ्फरपुर शहर में एक हृदय विदारक घटना घटी। एक मां ने अपनी तीन साल की एकमात्र खूबसूरत ,मासूम बेटी की निर्ममता पूर्वक गला रेत कर इसलिए हत्या कर दी कि वह बच्ची उसके विवाहेतर सम्बंध में बाधक थी। उसका प्रेमी उसे बच्ची के साथ स्वीकार करने को तैयार नहीं था। बच्ची का नाम मिस्टी था। महिला ने बच्ची की हत्या कर उसकी लाश को एक ट्राली बैग में बंद कर छत के रास्ते घर के पीछे फेंक दिया और खुद घर से भाग चली। यह घटना तब घटी जब महिला का पति रोज की तरह काम पर घर से बाहर गया हुआ था।मिस्टी और उसकी मां घर में अकेली थी। पुलिस ने हत्यारिन मां को गिरफ्तार कर लिया है। पूछताछ के दौरान महिला ने जो बताया वह न केवल शर्मनाक और निन्दनीय है बल्कि मां शब्द की मर्यादा और महानता को तार-तार करने वाला है। महिला का एक युवक के साथ विवाहेतर सम्बन्ध था और युवक उसे उसकी बेटी के साथ अपनाने को हर्गिज तैयार नहीं था। इसलिए उसने यह खौफनाक कदम उठाया। मां के हृदय की कोमलता और विशालता को लेकर कहा भी गया है – पुत्रो कुपुत्रो जायेत, क्वचिदपि माता कुमाता न भवति। संतान भले ही कुपात्र हो जाए ,माता कुमाता नहीं हो सकती। मनीषियों ने इससे एक कदम और आगे बढ़कर नारियों में निर्वैयक्तिक मातृत्व की भावना पैदा करने की बात कही है। महान साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के साहित्य में ऐसी अनेक महिलाएं निर्वैयक्तिक मातृत्व के गुणों से लैस दिखाई देती हैं जो रक्त सम्बंधी न होते हुए भी जिनको अपनी संतान के रूप में देखा , उसके प्रति अपने सारे दायित्वों का निर्वहन किया है।उनके लिए अपना पराया का कोई भेद ही नहीं है। यह किसी भी समाज के लिए आदर्श स्थिति कही जा सकती है। मासूम मिस्टी की हत्या को हम पाशविक कृत्य भी नहीं कह सकते क्योंकि पशुओं में भी अपने बच्चों के प्रति जो नैसर्गिक ममत्व होता है ,उसे दुनिया जानती है। सांप भी अपने अंडे खाता है लेकिन बच्चों को नहीं। ऐसे में यह सवाल वाजिब ही है कि वसुधैव कुटुम्बकम और सभी जीवों के प्रति समभाव का रट लगाते हुए आखिर हम कैसे इस मुकाम पर पहुंच गये जहां अपने ही मासूम बच्चे का निर्ममता पूर्वक गला रेतने में हमारी रूह तक नहीं कांपती ? मिस्टी की मां ने पुलिस को यह भी बताया कि पेट्रोल क्राइम सीरियल देखने के बाद ही उसे इस तरह के कुकृत्य की प्रेरणा मिली । आज घर -घर में टीवी ,बूढ़े, ,जवान , किशोर और बच्चों के हाथ में एनड्रायड मोबाईल । मोबाईल पर अश्लील वीडियो की भरमार। लोगों में मानवीय मूल्यबोध का क्षरण , नैतिक और सांस्कृतिक पतन , क्षणिक लाभ के लिए एक -दूसरे का गला काटने की बढ़ती प्रवृत्ति । दूसरी तरफ तार्किक मानसिकता और वैज्ञानिक दृष्टि पैदा करने वाली शिक्षा का अभाव। आखिर कौन है इसका जिम्मेवार ? शिक्षा , संस्कृति ,जीवन मूल्य ,नीति -नैतिकता, आदर्श ये सभी अपने समय के आर्थिक आधार का ऊपरी ढांचा होते हैं।यही आर्थिक आधार इसे नियंत्रित और संचालित करता है। यह सर्व विदित है कि आज हम जिस व्यवस्था में रह रहे हैं , उसका आधार पूंजीवादी व्यवस्था है जो इंसान को हैवान बनाने पर तुला हुआ है। जब, हर शाख पर उल्लू बैठा हो ,अंजाम -ए गुलिस्तां क्या होगा? मासूम मिस्टी की निर्मम हत्या इसी हैवानियत और मानवीय मूल्यों के क्षरण का परिणाम है।