डॉ योगेन्द्र
भागलपुर से चला था तो बेहद गर्मी थी। पंखे में भी पसीने सूखते नहीं थे। मुझे कभी-कभी अंदेशा होता था कि मेरी तबियत तो ख़राब नहीं हो रही। दूसरी तरफ़ गंगा उफान पर थी। भागलपुर के उत्तरी इलाक़े के बहुत से घर डूब चुके थे। इन घरों में से कई घर ऐसे हैं, जो जबर्दस्ती बनाये गये हैं। यानी वह घर गंगा का ही था, लेकिन लोगों की हवस और ज़मीन की भूख ने गंगा से उसका घर छीन लिया। दियारे के बहुत से लोग गाय-गोरू, बकरी, भैंस और घर के जो सामान ला सके, लेकर तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय परिसर में आ गये थे। भागलपुर की सड़कों पर भैंस के कारण जाम लगना आम बात थी। भागलपुर हवाई अड्डे में कम से कम हज़ार भैंसे होंगीं। सचमुच लोग कितने साहसी हैं कि हर वर्ष उनका घर उजड़ता है और हर वर्ष वे वहीं घर बना लेते हैं। बीबी, बच्चे, बूढ़े सभी पॉलीथीन की छत के तले रह रहे हैं। विश्वविद्यालय और शिक्षकों के क्वार्टर में गंगा का पानी घुस गया था। यहॉं तक कि जमालपुर-भागलपुर रेल खंड की ज़्यादातर ट्रेनें या तो स्थगित कर दी गयीं या उसकी रूट बदल दी गई। राँची पहुँचा तो गर्मी ग़ायब थी। कल भी बारिश होती रही और आज भी बारिश हो रही है। यहाँ वर्षा का कोई ठिकाना नहीं है। अभी आसमान में सूरज दमक रहा है। थोड़ी देर में बारिश शुरू हो जायेगी।
सुबह टहलने निकला तो शाल, आम, युकिलिप्टस और अंडी के पौधों पर बरसती बूँदें खुद ही कविता कह रही थीं। राँची में अंडी बहुत है। जहॉं रह रहा हूँ, उसकी गलियों में अंडी ही अंडी है। अंडी के पौधे इसलिए भी प्रभावित करते हैं, क्योंकि इससे बचपन की यादें जुड़ी हैं। गर्मी में अंडी पक जाती थी और चन्न-चन्न कर वह फूट कर धरती पर गिरती थीं। हम बच्चे उसके फूटने का इंतज़ार करते रहते। एक-एक अंडी को चुन कर जमा करते और उसे मैं और मेरे दोस्त हथेली के ऊपरी सिरे पर रखते और उसे लड़ाते। जिसकी अंडी फूट जाती, वह हार जाता। अब यह खेल खेल नहीं रहा। खेलने के बहुत से नये तरीक़े आ गये। क्रिकेट तो आम बात है। मोबाइल पर भी बहुत से खेल हैं। वक़्त के साथ खेल भी बदल रहे हैं। उस वक़्त कबड्डी, राजा कबड्डी, दोल पत्ता, गुल्ली, गुल्ली-डंडा, गोबर के रस-रस आदि आम खेल थे। स्कूलों में फुटबॉल और वॉलीबॉल। राँची में खेल की एक परंपरा है। यहाँ क्रिकेट तो है ही, लेकिन अन्य खेल भी हैं। अक्सर हॉकी, फुटबॉल आदि की राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएँ होती रहती हैं ।
उधर दिल्ली गर्म होती रहती है। नयी नवेली मुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने से इंकार कर दिया। उसे उन्होंने आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के लिए सुरक्षित रखा। यह संविधान का तौहीन करना है या नहीं, लेकिन चमचागिरी और ड्रामे की पराकाष्ठा है। राजनीति में ड्रामे की बहुत बड़ी भूमिका है। जो जितना बड़ा ड्रामेबाज़ होगा, उसकी सफलता की उतनी ही संभावना है। राजनैतिक कलाकार सिनेमा के कलाकार से ज़्यादा ड्रामेबाज़ होते हैं, क्योंकि उन्हें लाइव प्रदर्शन करना होता है। वे कहाँ कितना रोयें, कितना हंसे, इसका पूरा ख़्याल रखते हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री की यह ड्रामेबाज़ी बीजेपी और अन्य पार्टियों को पसंद नहीं। आजकल भारतीय राजनीति के पटल पर दो शब्दों ने क़ब्ज़ा जमा रखा है- संविधान विरोधी और देशद्रोही। कब कहाँ ये शब्द चस्पा हो जायेंगे, कहा नहीं जा सकता। संविधान भारतीयों को मुक्त करने आया था, लेकिन इतने तरह के क़ानून बनाये जा रहे हैं कि लगता है कि संविधान कहीं है और भारतीय न्याय संहिता कहीं। ज़्यादा क़ानून बताता है कि समाज और देश असुरक्षित है। उसे सुरक्षा चाहिए, न कि क़ानून । क़ानूनों से देश सुरक्षित नहीं होता।