आखिर कैसे बनेगा बेनीपुरी के सपनों का देश ?

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आज सितम्बर महीने की 7 तारीख है। कलम के जादूगर पत्रकार ,साहित्यकार ,राजनेता रामवृक्ष बेनीपुरी का स्मृति दिवस। आज ही के दिन आज से 56 साल पहले इस स्वप्नदर्शी साहित्यकार और समाजवादी राजनेता बेनीपुरी का निधन हुआ था। स्वप्नदर्शी इसलिए भी कि बेनीपुरी जी जीवन पर्यंत एक ऐसी समाज व्यवस्था की स्थापना के लिए संघर्षरत रहे , जहां अंतिम पायदान पर रह रहे लोगों को भी इंसानियत की जिंदगी जीने और सिर उठा कर चलने का अवसर मिल सके। देश में 1952 में पहला आम चुनाव हो रहा था। बेनीपुरी जी अपने गृह क्षेत्र कटरा उत्तरी विधान सभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार थे।
अपने चुनाव प्रचार के दौरान जनता से मिल रहे व्यापक समर्थन और उस दौरान अपने अनुभवों की चर्चा करते हुए बेनीपुरी जी अपने संस्मरण ‘ डायरी के पन्ने’ में लिखते हैं ,
“बेनीपुरी जिंदाबाद — ये नारे चारों ओर सुनाई पड़ते रहे, इन कई दिनों से। जब कभी मेरी मोटर को सड़क से गुजरते देखते , बच्चे चिल्ला उठते —- बेनीपुरी जिंदाबाद !
(यदि बच्चे और मुछ -उठान नौजवानों के हाथ में वोट होते, मैं कभी का जीत गया होता )किंतु, जब -जब यह जिंदाबाद सुनता हूं , सिहर उठता हूं।
यह जिंदाबाद बेनीपुरी नामक व्यक्ति का नहीं है, इतना तो समझता ही हूं। यह जिंदाबाद है उन सपनों का, जिन्हें आजकल मैं बिखेरता फिर रहा हूं। मैंने मित्रों से कहा है ; मैं वोट नहीं मांगता —मै सपने बो रहा हूं।
सपने ,नये जीवन के सपने , सुंदर , स्वस्थ और सम्पन्न जीवन के सपने।”
आखिर कैसा था वह सपना ? बेनीपुरी जी कैसा देश बनाना चाह रहे थे ? आइए जानते हैं बेनीपुरी जी के सपने को उन्हीं के शब्दों में। वे लिखते हैं , ” जब लोगों से कहता हूं , हमें एक ऐसा देश बनाना है जिसमें बच्चों के बदन पर पूरे गोश्त हों ,उनके गालों पर लाली हो , उनकी आंखों में कीचड़ और बालों में जुएं न हों, वे रंग बिरंगे वस्त्रों से आच्छादित हों , वे किलकारियां मारते हों, उछलते हों ,कूदते हों।
हमें एक ऐसा देश बनाना है ,जहां जवानों की आंखें धंसी न हों, गाल पिचके न हों, छाती सिकुड़ी न हो — जो सक्षम हों — चौड़ी छाती वाले , बलिष्ठ भुजाओं वाले,जो झूमते चलें तो धरती धसके और ठठाकर हंसे तो आसमान गुंजित हो उठे।
हमें एक ऐसा देश बनाना है जहां बुढापा अभिशाप न हो,सूखी टांग ,झुकी कमर ,हाथ में लाठी लिए,कंकाल ऐसे लोग जहां न दिखाई पड़ें। जहां की बच्चियां तितलियां हों , और युवतियां मधुमक्खियां। जहां की वृद्धाएं आशीर्वाद बिखेरती हों।
हां ,हमें ऐसा देश बनाना है जहां गांव में गंदगी न हो। जहां खेत में अन्न की बालियां और फलियां लहराएं।जहां किसान आसमान के गुलाम न हों ,नदियां बाढ़ से कहर न ढाएं। जहां सभी सुखी , सानन्द और सम्पन्न हों।”
जाहिर है ,बेनीपुरी समाजवादी समाज व्यवस्था की स्थापना के पक्षधर थे। एक ऐसी व्यवस्था जहां श्रम को प्रतिष्ठा मिले और श्रमिकों को सम्मान के साथ जीने का अवसर।मनुष्य के द्वारा मनुष्य का शोषण न हो। लेकिन इस देश के तथाकथित समाजवादियों ने ही उनके सपनों में पलीता लगा दिया। बेनीपुरी के सपनों का देश बनाने और शोषणमुक्त समाज के निर्माण के लिए सर्वहारा शोषित वर्ग को राजसत्ता पर काबिज होना पहली शर्त है। आजादी के बाद जिनपर यह जिम्मेदारी थी ,वे ही लोग आपस में फाड़ -फाड़ होकर आज पूंजीवाद के चाकर बने हुए हैं। ऐसे में बेनीपुरी के सपने को साकार करना एक बड़ी चुनौती है , लेकिन असम्भव नहीं।

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