गाँधी, चैपलिन और बिड़ला

जब देश ही क्रेडिट पर है तो आम जीवन क्या?

0 13

डॉ योगेन्द्र
चार्ली चैपलिन को कौन नहीं जानता! वे शानदार अभिनेता तो थे ही, संवेदनशील इंसान भी थे। 1965 में उन्होंने अपनी बेटी को चिट्ठी लिखी-‘उड़ो-उड़ो, पर पाँव धरती पर टिके रहें।’ उस वक़्त बेटी पेरिस में थी और चैपलिन लंदन में। रात्रि का समय था। घर के सभी लोग सो चुके थे। चैपलिन को बेटी याद आ रही थी। वे रात के सन्नाटे में भी बेटी के कदमों की आहट सुनते हैं। उन्होंने सन्नाटे भरी रात में लिखी चिट्ठी में लिखा -‘यदि तुम्हें दर्शकों का उत्साह और उनकी प्रशंसा तुम्हें मदहोश करती है या उनसे उपहार में मिले फूलों की गंध सिर चढ़ाती हैं तो एक कोने में बैठकर मेरा ख़त पढ़ते हुए अपने दिल की आवाज़ सुनना। मैं तुम्हारा पिता चार्ली चैपलिन, फटे पतलून में नाचा करता था।’ ऐसे अभिनेता ने गाँधी जी के सचिव महादेव देसाई को पत्र लिखा कि मैं गाँधी जी से मिलना चाहता हूँ। गाँधी चार्ली चैपलिन को जानते नहीं थे। जब उन्हें अवगत कराया गया तो वे 22 सितंबर 1931 को लंदन में चार्ली चैपलिन से मिले। दोनों की मुलाक़ात एक घंटे तक चली। चैपलिन ने गाँधी जी से पूछा कि वे मशीनों से नफ़रत क्यों करते हैं, तो गाँधी जी ने उत्तर दिया कि इन मशीनों के कारण भारत को ब्रिटेन पर आश्रित होना पड़ा था। इसके पाँच साल बाद चार्ली चैपलिन ने ‘मॉडर्न टाइम्स‘ नामक फ़िल्म बनाई, जिसमें उन्होंने मशीनों की खिल्ली उड़ाई थी।
ज़्यादातर लोग अब धरती पर नहीं रहते। अपने-अपने घरों में रक्खे मशीनों और अपने धन पर गर्व करते हैं। मशीनों और धन को ही जीवन मान लिया है और जो जीवन है, जिसमें धड़कन है, वह उपेक्षित है। मशहूर उद्योगपति घनश्यामदास बिड़ला ने अपने पुत्र बसंत को एक पत्र लिखा –
प्रिय बसंत,
तुम जब बड़े परिपक्व हो जाओगे, तब इस पत्र को पढ़ना। मैं अपने अनुभवों के आधार पर लिख रहा हूँ। मनुष्य के रूप में जन्म लेना दुर्लभ है। तुम्हें बहुत संपत्ति साधन मिले हैं, लेकिन अगर उनका उपयोग दूसरों की सेवा में किया जाय तो ही वे सही मायनों में उपयोगी होंगे। अपनी संपदा का उपयोग कभी भी वैभव विलास, सस्ते सुखों में मत करना। रावण ने अपनी संपदा का अनुचित उपयोग किया था, जबकि राजा जनक ने उसी का उपयोग सेवा कर्म में किया। धन संपदा शाश्वत नहीं होती, इसलिए जब तक वह तुम्हारे पास है, उसका इस्तेमाल दूसरों की सहायता के लिए करो। अपने लिए केवल जरूरत जितना ही उपयोग करो और शेष संपत्ति का व्यय दीन दुखियों के कष्टों के निवारण के लिए करो। धन संपदा एक ताक़त है, लेकिन हमें इसके नशे में नहीं आना चाहिए। नहीं तो दूसरों के साथ अन्याय करने लगेंगे। जो समझ और विचार तुम्हें दे रहा हूँ, उसे तुम अपने बच्चों तक पहुँचाना।
हमें एक ऐतिहासिक घटना को ज़रूर याद रखनी चाहिए । 1931 में जब गांधी ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम से मिलने गये, उन्होंने धोती और टायर की चप्पल पहन रखी थी। उनसे पूछा गया कि क्या इस पोशाक में सम्राट के सामने जाना उचित था? वे खुद लंदन में रहे हैं। उन्हें प्रोटोकॉल का ख़्याल रखना चाहिए था तो गाँधी का उत्तर था-‘सम्राट ने जितने कपड़े पहने हुए थे, वे हम दोनों के लिए काफ़ी थे। ‘आज भारत सहित दुनिया किस ओर जा रही है? सादगी तो दूर दूर तक नहीं है। लकदक को ही जीवन मान लिया गया है और जीवन का स्वत्व खो गया है। मध्य वर्ग तो लगता है कि उसके घर उपभोग की आँधी आयी है। हर कुछ क्रेडिट पर है। कार, घर, फ्रिज सभी के सभी। जब देश ही क्रेडिट पर है तो आम जीवन क्या? कर्ज लाओ, मौज उड़ाओ की नीति चल रही है। क्रेडिट से घर चलाना ठीक है या नहीं, अब कोई यह सवाल भी नहीं करता। लोगों ने मान लिया है, विकास का सर्वोत्तम रास्ता कर्जखोरी है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए The Dialogue उत्तरदायी नहीं है।)
Gandhi-Chaplin-Birla
Dr. Yogendra
Leave A Reply

Your email address will not be published.