मुझको, शिवाजी माफ़ करना, ग़लती म्हारे से हो गई
मोदी का माफ़ीनामा सरे बाजार है। मोदी समाज के सामने सर झुकाते हैं,संविधान के सामने सर झुकाते हैं। समाज, संविधान के बाद मोदीजी अभी शिवाजी के सामने सर झुकाते नजर आ रहे हैं। आठ साल पहले मोदीजी ने ही इस शिवाजी की प्रतिमा का अनावरण किया था,जो खंडित हुआ और जमीन पर आ गिरा ? वैसे,मोदीजी की राजनीति कुछ दिन पहले ही जमीन पर आ गयी थी। मोदीजी भी आसमान से जमीन पर आ गिरे हैं। इस गिरे हुए नेता को फिर से गिरना पड़ रहा है,यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है?
यद्यपि यह झुकना मोदीजी की भाषा का ही झुकना है। कमर इनकी अब भी कसी हुई ही है? मोदीजी के माफीनामे के कई मायने हैं। महाराष्ट्र में चुनाव है। चुनाव के दौरान कुछ भी किया जाना चुनावी-धर्म का एक हिस्सा है। मराठा राजनीति को साधना एक बड़ा मकसद हो सकता है। शिवाजी मराठा अस्मिता के प्रतीक हैं। शिवाजी को असम्मानित कर कोई भी सियासत यहाँ खड़ी नहीं हो सकती है। यह महाराष्ट्र ही है,जो हिन्दू राष्ट्र की बुनियाद है।
मुगलों से लोहा लेने वाला शिवाजी,हिंदवी स्वराज की स्थापना करने वाला शिवाजी,औरंगजेब को छकाने वाला शिवाजी और अफजल खां का पेट फाड़ने वाला शिवाजी,शुक्राचार्य और कौटिल्य की राजनीति को जिन्दा करने वाला शिवाजी इतिहास का कोई साधारण करेक्टर नहीं है। शिवाजी इसके अलावा कुर्मी जाति को पहचान दिलाने वाला नायक भी है। संघ साधना के साध्य भी है शिवाजी। इस नायकत्व के बहाने उत्तरप्रदेश और बिहार को भी साधना है.जर्जर नीतीश की कुर्मी बिरादरी को भी अपने पाले में करना है। पिछड़ी राजनीति के तपन का शमन भी करना है। शिवाजी को लेकर सर झुकाना केवल बहाना भर नहीं है। यहाँ बहाना नहीं बल्कि संघ-परिवार की सियासत का एक मुकम्मल ठिकाना भी है।
इस बहाने यह भी साबित करना है कि किस तरह पिछड़ों ने मुस्लिम राजाओं से दो-दो हाथ किये थे। आज भी वही दुहराने का वक्त है। यह सन्देश है मोदीजी का कि छोड़ो जनगणना और फनगणना।आओ पिछड़ों! मुसलमानों से फरियाय लो। यह मोदी का गुरिल्ला वार है। यह मोदीजी की नयी ‘गनिमी कावा’ है।भाजपा का अष्टदल कमल और शिवाजी की अष्टकोणीय संकल्पना एक समरूपता पैदा करती नजर आती है। महाराष्ट्र में मोदीजी का शिवाजी के सामने सर झुकाना इस राष्ट्र के सामने ही सर झुकाना है। शिवाजी के ट्रेक पर सियासत को आगे बढ़ाने की यह नयी कवायद है।
मोदीजी अपनी विरासत के प्रबल दावेदार हैं। इनके पूर्ववर्ती महानायकों ने भी माफी माँगी थी। सावरकर ने भी माफी माँगी थी और वाजपेयी ने भी माफी माँगी थी। जिन्ना के मजार पर चादर चढाने के बाद आडवाणी ने भी माफी माँगी थी? आज मोदीजी भी माफी मांग रहे हैं। यह अजूबा नहीं है। यह एक लखनवी विनम्रता है। लखनऊ में अदावत एक आदत का हिस्सा है। यहाँ की अदावत एक भाषा और आदत का हिस्सा है। शायद यह माफीनामा भी इसी प्रकार का है।
शिवाजी आगरा से जो भागे फिर कभी नहीं लौटे ? सौभाग्य है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कुछ दिन पहले शिवाजी को फिर आगरा ले आये ? औरंगजेब के बाद यह आदित्य ! ताजमहल के बाहर कई एकड़ में म्यूजियम बनना है। इसकी योजना अखिलेश यादव ने अपने शासनकाल में बनाई थी। इस म्यूजियम में मुग़ल की याद जिन्दा होगी ,मुमताज जिन्दा होगी उसका ताज जिन्दा होगा,पर योगी को मुहब्बत के इस महल से क्या लेना-देना? ताज केवल इनके सर पर चाहिए, चाहे ताजमहल को इन्हें ध्वस्त करना पड़ जाय?
ताजमहल क्योंकि विश्व का धरोहर है इसलिए इधर ये बुलडोजर तो नहीं चला सकते,पर इनकी चमक को फीका अवश्य कर सकते हैं? योगी जी ने कहा कि म्यूजियम में मुगलों की स्मृतियाँ नहीं,बल्कि शिवाजी से जुडी स्मृतियाँ प्रदर्शित होंगी। योगीजी डाल-डाल तो मोदीजी पात-पात ! मोदीजी नहीं चाहते कि शिवाजी योगीजी के हाथ लग जाय? शिवाजी इस आगरा से किसी तरह बचकर निकल भागे थे, पर भाजपा के चंगुल से शिवाजी का निकलना बहुत ही मुश्किल है। उत्तरभारत में शिवाजी की तलवार फिर से चमकने वाली है।
खैर,शाहूजी महाराज ने शिवाजी की जिस प्रतिमा की स्थापना 95 साल पूर्व की था वह प्रतिमा आज भी गरिमामयी बनी हुई है। पर मोदीजी की बनाई प्रतिमा आठ साल में ही गिर गयी? शिवाजी के वे अष्टप्रधान अगर स्वर्ग में कहीं होंगे तो इस प्रधान को अवश्य खोज रहे होंगें ?शिवाजी की मूर्ति का ठेका फिर किसी को मिल जाएगा। मूर्ति स्थापित हो जाएगी और नया नेम प्लेट भी लग जाएगा,पर शिवाजी के उन मूल्यों का क्या होगा जो उन्होंने जीया था? शिवाजी ने मुगलों से संघर्ष किया था पर शिवाजी का सेनापति मुसलमान ही था? मोदीजी मुसलमानों को सेनापति नहीं बना सकते,पर एक मंत्री तो बना ही सकते थे? पर नहीं बनाया। शिवाजी के राज में हर वर्ग महफूज था। अमन चैन बहाल था। उस मराठा दरबार में सभी धर्म की खुशबू थी। कोई धार्मिक घृणा का वातावरण नहीं था। लेकिन आज यहाँ सबकुछ है जो नहीं होना चाहिए। सारी राजनीति आज घृणा की बुनियाद पर ही टिकी हुई है। अभी मोदीजी से छत्रप नहीं साधे जा रहे हैं,तो छत्रपति कैसे साधे जायंगें ? सच यही है कि जिस तरीके की सियासत आज चल रही है इसमें शिवाजी केवल मूर्ति ही बन कर रह जायेंगें,मूल्य नहीं बन पायेंगें ?