फूट और झूठ के सहारे ‘वैतरणी’ पार करने के कुत्सित प्रयास
आप द्वारा 90 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा से भाजपा ख़ेमे में सन्नाटा
आगामी 5 अक्टूबर को होने जा रहे हरियाणा विधानसभा चुनावों की सरगर्मियां अपने चरम पर हैं। भारतीय जनता पार्टी तीसरी बार राज्य में सत्ता में वापसी के लिये ज़ोर आज़माइश कर रही है जबकि कांग्रेस पार्टी दस वर्षों के बाद सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाये बैठी है। ग़ौरतलब है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी बहुमत के लिये ज़रूरी 46 सीटें हासिल करने से 6 सीट पीछे रह गयी थी और उसे केवल 40 सीटें ही हासिल हुई थीं। उस समय कांग्रेस ने 31 सीटें जीत कर मज़बूत विपक्ष के रूप में अपना किरदार अदा किया था। जबकि राज्य में 10 सीटें जीतने वाली जननायक जनता पार्टी ने भाजपा के साथ मिलकर भाजपा-जजपा की गठबंधन सरकार बनाई थी। इसके बदले में जजपा को उपमुख्यमंत्री सहित कुल 2 मंत्री पद मिला था। परन्तु मार्च 2024 में जजपा ने भाजपा से नाता तोड़ लिया। ख़बर तो यह आई कि जजपा 2024 के लोकसभा चुनावों में हरियाणा की 10 में से 2 सीट पर अपनी दावेदारी जता रही थी जिसके लिये भाजपा तैयार नहीं हुई। परन्तु राजनैतिक हल्क़ों में चर्चा यह थी कि जजपा ने किसान आंदोलन के बाद उपजे सत्ता विरोधी हालत के मद्देनज़र जजपा ने भाजपा से अपना नाता तोड़ा था।
इस बार कांग्रेस व भाजपा के अतिरिक्त पिछली बार की सत्ता की भागीदार जजपा सहित और भी कई क्षेत्रीय दल चुनाव मैदान में हैं। इनमें कुछ दल ऐसे हैं जो अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये चुनाव मैदान में हैं तो कुछ हरियाणा की जनता से अपना परिचय कराने के लिये यानी राज्य की राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने मात्र के लिये चुनाव लड़ रहे हैं। जबकि 90 सीटों की विधानसभा में कांग्रेस ने एक सीट अपने INDIA गठबंधन सहयोगी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के लिये छोड़कर शेष सभी 89 सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है। INDIA गठबंधन की सहयोगी आम आदमी पार्टी से कांग्रेस की सीटों के बंटवारे को लेकर पैदा हुई असहमति के बाद आप ने अकेले ही चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है। 2019 के चुनावों में आप ने राज्य की 46 सीटों पर चुनाव लड़ा था परन्तु एक भी सीट जीत नहीं सकी थी। परन्तु इस बार उसने सभी 90 सीटों पर अपने प्रत्याशी मैदान में उतार दिये हैं। ग़ौरतलब है कि 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में आप को NOTA से भी कम वोट हासिल हुये थे। इसके बावजूद 90 सीटों पर पार्टी द्वारा अपने प्रत्याशी खड़ा करने का अर्थ राज्य की जनता, आम आदमी पार्टी द्वारा सीटें जीतना नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी की अप्रत्यक्ष रूप से मदद करना ज़रूर लगा रही है।
अभी तक हरियाणा को लेकर चुनाव पूर्व जो भी सर्वेक्षण सामने आ रहे हैं लगभग उन सभी में भाजपा की सत्ता की बिदाई और कांग्रेस की वापसी की संभावना जताई जा रही है। चुनाव प्रचार के दौरान राज्य के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी से लेकर अन्य कई मज़बूत से मज़बूत भाजपा प्रत्याशियों तक को भी जिस तरह किसानों, ग्रामीणों व आम जनता का विरोध सहना पड़ रहा है उसे देखकर भाजपाइयों के पैरों तले से ज़मीन खिसक रही है। इसलिये टिकट वितरण से पूर्व से ही भाजपा व इससे जुड़ा आइ टी सेल,’भक्तमंडली’ गोदी मीडिया व वॉट्सऐप एवं सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफ़ॉर्म्स के माध्यम से कांग्रेस के बारे में झूठ फैलाने में अपनी पूरी ताक़त झोंक रही है। जिस समय कांग्रेस ने पार्टी की भीतरी खींचातानी के कारण टिकट वितरण में देर की थी उस समय इसी ‘अफ़वाहबाज़ सत्ताधारी नेटवर्क ‘ द्वारा एक अफ़वाह यह फैलाई गयी कि राहुल गाँधी से नाराज़ होकर भूपेंद्र हुडा व दीपेंद्र हुडा दिल्ली में कांग्रेस की टिकट सम्बन्धी एक मीटिंग से उठकर बाहर आ गये। चंद घंटों में ही इसी तंत्र ने अपने इसी झूठ का ‘फ़ॉलो अप’ यह तैयार किया कि ‘हुड्डा कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी खड़ी करने जा रहे हैं। बाद में जब इन्हें पता चला कि हुड्डा 89 में से 72 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को टिकट दिलाने में सफल रहे तो हुड्डा से नया राजनैतिक दल बनाने की झूठी आस लगाये बैठा यह ‘झूठा प्रचार तंत्र’ बग़लें झाँकने लगा।
इसके बाद एक शर्मनाक वीडीओ सामने आया जिसमें कोई बुज़ुर्ग ग्रामीण व्यक्ति पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा के लिये अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर रहा है। इस विषय को लेकर भी भाजपा का यही तंत्र पूरी तरह सक्रिय हो उठा और इसी वीडियो को वायरल कर डाला। गोया शैलजा के अपमान से गोया उनकी लाटरी खुल गयी हो। कांग्रेस को दलित विरोधी प्रचारित किया जाने लगा और उत्साहित भाजपाइयों द्वारा शैलजा को भाजपा में आने का न्यौता भी दिया जाने लगा। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर एक भाजपा प्रत्याशी की चुनाव सभा में शैलजा के प्रति न केवल हमदर्दी जताते नज़र आये बल्कि उन्हें भाजपा में शामिल होने का सार्वजनिक मंच से न्यौता भी दे डाला। इसका कारण यही था कि हुड्डा के मुक़ाबले शैलजा समर्थक प्रत्याशियों को टिकट कम मिला। बस, इसी नाराज़गी को इन ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों ‘ ने अपने लिये सुनहरा अवसर माना। परन्तु शैलजा ने इन सभी अफ़वाहों में उस समय पलीता लगा दिया जब उन्होंने यह कहा कि -‘जिस तरह मेरे पिता कांग्रेस पार्टी के तिरंगे से लिपट कर गये थे उसी तरह मैं भी कांग्रेस के ही तिरंगे में लिपटकर जाऊंगी’। साथ ही शैलजा ने खट्टर जैसे नेताओं को यह कहकर आईना भी दिखा दिया कि ‘भाजपा के जो नेता आज टिप्पणी कर रहे हैं, उनके काफ़ी नेताओं से ज़्यादा लंबा राजनीतिक जीवन मेरा रहा है। मुझे नसीहत न दें , मुझे अपना रास्ता और मेरी पार्टी मेरा रास्ता तय करना जानती है ‘। दूसरी तरफ़ कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने भी कह दिया कि ‘शैलजा हमारी बहन है, पार्टी की सम्मानित नेता हैं और यदि पार्टी में किसी ने कुछ कहा है तो उसकी पार्टी में कोई जगह नहीं है’।
इसके बाद तो मानो भाजपा ख़ेमे में सन्नाटा ही पसर गया। आमआदमी पार्टी द्वारा 90 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा से प्रफुल्लित भाजपा जोकि शैलजा प्रकरण को लेकर भी काफ़ी उम्मीदें लगाये बैठी थी उसे मायूसी के सिवा कुछ हाथ नहीं लगा। और फूट और झूठ के सहारे ‘वैतरणी’ पार करने के भाजपाई कुत्सित प्रयास धरे के धरे रह गये।
निर्मल रानी
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए The Dialogue उत्तरदायी नहीं है।)