भुतहे हबेली के सवाल ?

आम आदमी पार्टी अपने ही आदर्शों के दबाव में है

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बाबा विजयेन्द्र

बंगला के पीछे क्या है? पीछे कौन पड़ा है बैरी, जिनको कांटा लगा है? हाय रब्बा! देश में ‘आप’ ने क्या हंगामा मचा रखा है? बंगला बनाना, बंगला में रहना और बंगला को छोड़ना एक कहानी की तरह है। इस बंगले में बहुत सारे राज छुपे हैं। यह मेरा नहीं भाजपा नेता सचदेवा का बयान है। मुझे लगता है कि जब से यह बंगला बना तबसे कुछ न कुछ लफड़ा ही लगा हुआ है। मुझे लगता है कोविड के समय जब आम आदमी तड़प-तड़प कर मर रहा था तभी इस बंगला का निर्माण हो रहा था। कोविड की उस त्रासदी में बहुत सारे लोग मरे। पर केजरीवाल के इस शीश महल का निर्माण जारी रहा? यह पीड़ादायक थी। अपने को दिल्ली का और झुग्गियों का बेटा कहने वाले केजरीवाल की ऐसी अय्याशी ने लोगों के बीच अविश्वास पैदा किया? बिल्कुल ही नैतिकता के विपरीत थी बातें। खासकर करोना के वक्त? खैर, उन आम आदमी की आत्मा आज भी इस बंगले के इर्द-गिर्द भटक रही होगी। वे भटकती आत्माएं अपने-2 सवाल के साथ आज भी मौजूद हैं। इनके सवाल हैं कि जब आम आदमी तड़प रहा था तब आम आदमी पार्टी बंगला का निर्माण क्यों कर रही थी? आप की मानवीयता सवालों के घेरे में थी। भूत बनकर वे सवाल आज भी ‘आप’ का पीछा कर रहे हैं। विपक्ष इन सवालों को सम्मान देगा ही? वैसे विपक्ष के आरोप निराधार भी नहीं है। भाजपा और आप का पैदाइशी तकरार है जो आज भी जारी है।
वैसे यह साल ‘आप’ के लिए बहुत ही बुरा साल रहा। सारे बड़े नेता किसी न किसी आरोप में जेल और बेल में उलझे रहे। अरविन्द केजरीवल बेल पर ही बाहर आए हुए हैं। अपनी कुर्सी से इन्होंने त्याग पत्र दिया। स्वाभाविक है कि इन्हे सरकारी आवास छोड़ना था और इन्होंने छोड़ भी दिया। खड़ाऊ मुख्यमंत्री को भी लोक निर्माण विभाग ने पहले ही आवास मुहैया कर दिया। फिर लफड़ा कहाँ है? आवास मुहैया होने के बावजूद आतिशी मुख्यमंत्री होने के नाते इस आवास में रहने क्यों आई? क्या कोई यह कब्जा की नीयत थी? आतिशी का सामान बाहर कर दिया गया। इस हवेली में ताला भी लगा दिया गया है। इस हवेली को लेकर भाजपा और आपके बीच हाहाकार मचा हुआ है? इस हवेली के साथ अनियमितता का रहस्य छिपा हुआ है। सीबीआई, लोकनिर्माण विभाग और सतर्कता विभाग के पास अभी इस हवेली का मामला लंबित है। हवेली से जुड़े भ्रष्टाचार की जांच जारी है। जांच पूरी होने तक यह हवेली एलजी के ही कब्जे में होगी। इसकी चाभी शायद अभी आतिशी के पास है।
एक सौ एकहत्तर करोड़ का यह बंगला और अस्सी लाख के चांदी के वर्तन? इस तरह की बहुत सारी बातें। करोड़ों के परदे और करोड़ों के शौचालय? सवाल अनियमितता के होने या न होने का नहीं है। सवाल है राजनीतिक पाखंड का? केजरीवाल कहते ही एक आम आदमी की छवि उभरती थी। सामान्य से जिंदगी के अनेक असामान्य सपने? पर यह सत्य नहीं है। वह एक पाखंड था? पाखंड के बल पर सत्ता प्राप्त करना और जनता को बेवकूफ बनाने का आरोप, विपक्ष का प्रतिनिधि आरोप है। इसमें कोई दो राय नहीं कि आम आदमी पार्टी अपने ही आदर्शों के दबाव में है। निर्धारित मर्यादा की उड़ती धज्जियां सवाल तो पैदा करेगी ही? आप संतोष कोली को जानते होंगें। आप की नेता और केजरीवाल की खास सहयोगी कोली की एक दुर्घटना में मौत हो चुकी है। कोली का आवास कभी केजरीवाल का स्थायी पता हुआ करता था। कोली आम लोगों की समस्या से मुठभेड़ करने वाली महिला थी। कोली इस्तेमाल हुई और मर गई। कृतघ्न केजरीवाल का पता भी बदल गया? सत्ता होती ही ऐसी? सत्ता की चमक से लक्ष्य का ओझल हो जाना स्वाभाविक है। और यही हुआ। अरविन्द उलट कर फिर कभी कोली के आवास को नहीं देखा, न ही उसे याद किया? समाज से इनके सरोकार सिमटते चले गए और जो आज बचा है वह है केवल सत्ता-प्राप्ति का समीकरण? हरियाणा का यह नया लाल, केजरीवाल अपने घर में भी नकार दिए गए। बहुत बुरा प्रदर्शन? काठ की हांडी कितनी दफा चढ़ायी जाएगी? सत्य प्रताड़ित होता है पर पराभूत नहीं होता। अरविन्द का सत्य सामने है। क्या दिल्ली कुछ ऐसा करने वाली है। केजरीवाल गंभीर हो गए हैं और आगामी चुनाव को बहुत ही गंभीरता से लेने की बात दुहरा रहे हैं। पद पर रहते हुए यह जेल और बेल है तो हारने के बाद क्या होगा?

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