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इन दिनों

जेल, जमानत और सत्ता के खेल

और दिन की तरह दो अक्तूबर भी बीत गया। सीधा-सादा दिन। कहीं महात्मा गाँधी की प्रतिमा पर फूल मालाएँ चढ़ीं, कहीं लालबहादुर शास्त्री की प्रतिमा पर।

बाढ़ में भंसते भक्त और भगवान

मंदिर भी डूब रहे, मस्जिद भी। बाढ़ किसी की नहीं सुन रही। वह अंधी, बहरी, गूँगी हो गयी है। लोग लाख मनाने की कोशिश करते हैं, वह मान ही नहीं रही है। हर दिन उसका रौद्र रूप डराता है जन मानस को।

गोबर लपेसने के यज्ञ में बूढ़े

कोरोना देश में फैला था तो लोग दहशत में थे। आदमी-आदमी के पास नहीं जाना चाहता था। किसी को छींक हुई कि लोग भयभीत हो जाते थे। लगता था कि कोरोना दस्तक दे रहा है। ऐसे मौसम में बहुत से ज्ञानी जनम ले लेते हैं।

झारखंड में प्रवासी पक्षी

2000 के पहले झारखंड बनाओ रैली होती थी, अब झारखंड बचाओ रैली हो रही है। राजनीति में रैली ज़रूरी होती है। रैलियों से पता चलता है कौन पार्टी जीवित है और कौन मर गयी

पावरलेस स्वामी

कई स्वामी बलात्कार के मुक़दमे में हवालात में हैं दरअसल स्वामी पावरलेस है उसने धर्म को धंधा बना लिया है

क़ानूनों से देश सुरक्षित नहीं होता

आजकल भारतीय राजनीति के पटल पर दो शब्दों ने क़ब्ज़ा जमा रखा है- संविधान विरोधी और देशद्रोही कब कहाँ ये शब्द चस्पा हो जायेंगे कहा नहीं जा सकता

यक्ष, गाँधी और भगत सिंह

दौड़ती भागती ट्रेन की खिड़कियों से बाहर के दृश्य आकर्षक लगते हैं। सरकते पेड़-पौधे, रेल की पटरियां, गांव-घर, लोग, धान की हरीतिमा। कहीं कहीं पहाड़ और वे पहाड़ बरसात में जंगल बनने को आतुर रहते हैं।

महान गुरु राधाकृष्ण सहाय की जयंती : स्मरण

उन्होंने ज्यादातर शैक्षणिक कार्य भागलपुर विश्वविद्यालय में ही किया। दो वर्ष शांतिनिकेतन में रहे और पांच वर्ष हुम्बोल्ट विश्वविद्यालय, जर्मनी में विजिटिंग प्रोफेसर रहे।