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मध्य पूर्व में होता ‘समुद्र-मंथन’
पूरा विश्व गोया इस समय बारूद के ढेर पर बैठा हुआ है। सामने से तो यही नज़र आ रहा है कि एक तरफ़ कल तक सोवियत संघ के रूप में साथ रहने वाले दो देश रूस व यूक्रेन युद्धरत हैं तो दूसरी तरफ़ इस्राईल बनाम ईरान-हमास-लेबनान व हूती के बीच युद्ध चल रहा है।
आदमखोर दुनिया में हम-तुम
हम कैसी दुनिया बना रहे हैं? क्या इस दुनिया में मानव रह पायेगा? पानी बोतल में बंद किया जा चुका है। हवा सिलेंडर में बंद किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि न पानी शुद्ध बचा है, न हवा। भोजन में क्या-क्या नहीं है। कोई दावा नहीं कर सकता कि हम शुद्ध…
मुंशी प्रेमचंद की यादें
कल महान कहानीकार, उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की 88 वीं पुण्य तिथि थी। इस कालजयी साहित्यकार ने 8 अक्टूबर,1936 को अपने नश्वर देह का त्याग किया था। वे मरकर भी अमर हो गये। 'कीर्ति यस्य स जीवति'।
जीवन का मूल्यबोध दौलत नहीं, इंसानियत है
आज दौलत अर्जित करने के लिए आपाधापी मची हुई है। दौलत, दौलत, दौलत चाहे कैसे भी हो, दौलत अर्जित करना है। क्यों नहीं? दौलत से ही शोहरत मिलती है। यही शोहरत हासील करना जीवन का चरम लक्ष्य बन चुका है। शिक्षा का उद्देश्य भी दौलत जमा करना भर रह गया…
मरते लोग, मारते लोग
इज़राइल और गाजा पट्टी वाले युद्ध में 42 हज़ार लोग मारे जा चुके हैं जिनमें 16,765 बच्चे हैं। इसके अलावे 18 हज़ार बच्चे ऐसे हैं जो अनाथ हो चुके हैं। अब इस धरती पर न उसके पिता बचे, न माँ। दस हज़ार लोगों का पता नहीं है और 97 हज़ार फ़िलिस्तीनी…
नयी सभ्यता के लिए तलवार नही, विचार चाहिए
तीसरे विश्व युद्ध का आगाज हो चुका है। मानवता के करुण पुकार अनसुनी हो रही है। स्त्रियां, बच्चे, बूढ़े सभी युद्ध की विभीषिका के शिकार हैं। मन व्यथित है कि हमारी निजी भूमिका क्या हो और सामूहिक भूमिका क्या हो?
वनवासी क्षेत्रों मे नवरात्रि
वनवासी क्षेत्रों की नवरात्रि पूजा ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों से तनिक भिन्न है। इनके नामों व पूजा पद्धति में विविधता है। वनवासी देवी माँ से अच्छी फसल, वर्षा व प्रकृति संरक्षण की याचना करते हैं। भील समाज में नवणी पूजा, गोंड समाज में खेरो…
दुकानें सजी हैं जवान स्त्रियों की तरह
युवा दुनिया में क्या कर रहे हैं? यह जानना दिलचस्प होगा। इनके लिए समस्या रोज़गार नहीं है, न ही इज़राइल-फ़िलिस्तीन हमले हैं और न ही सड़कों पर भूख से बिलबिलाते लोग हैं। ऐसे युवा लंदन और न्यूयार्क जैसे महानगरों में चेहरे चमकाने वाली खुली…
आज बात प्रेम-मुहब्बत की
हालांकि मैं जिस प्रेम की बात कर रहा हूं, उसका पर्याय मुहब्बत हरगिज़ नहीं। यह प्रेम वह इश्क भी नहीं जिसकी चर्चा आज कल सरेआम होती है, गांव की गलियों में, चौराहे पर, बगीचे में, दरिया किनारे और स्कूल कालेजों में भी। सर्वत्र ! प्रायः युवा छात्र…
प्रशांत किशोर के नाम एक चिठ्ठी
आपके सामने इस जन शक्ति को एक ऐसे प्रतिरोधात्मक शक्ति के रूप में विकसित करने का सुनहला मौका था। जनता की यह प्रतिरोधातत्मक शक्ति से सर्व ग्रासी पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ा जा सकता था। समानता और भाईचारे के आधार पर एक नई समाज व्यवस्था स्थापित…