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आक्समिक नही है नेताओं का चारित्रिक अवमूल्यन
देश में आजादी आंदोलन चल रहा था। अपने नेता के आह्वान पर झुंड के झुंड युवक व युवतियां आंदोलन में शामिल हो रहे थे। अपने प्राणों की आहुति दे रहे थे। उनके दिलों में अपने नेताओं के प्रति बड़ा सम्मान भाव था। तब नेताओं में खुदगर्जी की कोई भावना…
न गिद्ध रहे, न गिद्ध दृष्टि
नदियों की बर्बादी में किसका हाथ है? अगर हम कहते हैं कि नदियों को गंदा करना बंद करो, तो क्या बंद हो जायेगा? नदियाँ क्या इस व्यवस्था से अलग है? व्यवस्था इसी तरह की रहेगी, तो नदियों को कोई बचा सकता है?
चुनाव के बोझ से दबा लोकतंत्र
नेताओं की जीभ जब फिसलने लगे। इनके अनाप-शनाप बयान आने लग जाए। हिन्दू-मुसलमान, जातीय और साम्प्रदायिक दंगे भी होने लग जाए। ईडी, सीबीआई एक्टिव हो जाए। कुछ नेता और कार्यकर्ताओं के मारे जाने की खबर भी आने लग जाए तो आप अंदाजा लगाने में देर नहीं…
बुद्ध से बुद्धू तक का सफ़र
होने का कुछ भी हो सकता है। जब पैंतीस वर्ष का पुत्र सत्तर वर्षीया माँ को पीट-पीट कर हत्या कर सकता है और घर में ही धरती के अंदर गाड़ सकता है, प्रेमिका को टुकड़े-टुकड़े में काट कर फ्रिज में रख सकता है, नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार हो सकता…
छात्रों का राजनीति में शामिल होना जरूरी
"जब वक्त पड़ा गुलिस्तां को, खूं मैंने दिया, अब बहार आई तो कहते, तेरा काम नहीं'। यह कथन उन राजनेताओं के लिए बिल्कुल सटीक है जो छात्र-युवाओं की कुर्बानी के बल पर सत्ता हासिल करने के बाद उनको राजनीति से अलग रहने की नसीहत देते हैं।
विजयादशमी पर बाबासाहेब क्यूँ नहीं याद आए?
14 अक्टूबर 1956 आज भी संघ को रह-रह कर भयभीत करता है। संघ आज इस तिथि पर मौन है। संघ नहीं चाहता है कि इस तिथि को कोई याद करे!
रावण दहन तो हो गया, लेकिन —–!
अगर हम वर्तमान परिवेश में शक्ति की पूजा को बुराई पर अच्छाई, असत्य पर सत्य की जीत और नारी-अस्मिता की रक्षा की दृष्टि से देखें तो जो स्थिति नजर आती है, वह बड़ी डरावनी है।
सीता और शूर्पणखा
दुर्गा पूजा ख़त्म हो गया। सड़कों पर उमड़ी भीड़ अपने-अपने घरों में सिमट गई। वे बैनर, पोस्टर, सजावट सबके सब धुँधले पड़ गये। जगह वही है, स्थान ज़रा भी नहीं खिसका, लेकिन एक सजी दुनिया खिसक गई।
ई वी एम संदिग्धता: या इलाही ये माजरा क्या है?
हरियाणा विधानसभा चुनाव के अप्रत्याशित परिणामों ने पूरे देश के न केवल सभी प्रमुख एजेंसीज़ द्वारा किये गए एक्ज़िट पोल्स को बुरी तरह झुठला दिया बल्कि बड़े-बड़े राजनैतिक विश्लेषकों को भी हैरानी में डाल दिया।
यह हुकूमत हीं जर्सी है
देसी गोवंश सूचीबद्ध हो। इनकी पहचान भी अद्यतन हो। किसान इनके महत्व को जाने। हम जानते हैं कि राज्य की अपनी सीमा होती है पर संभावना बहुत होती है। बस मजबूत इच्छा शक्ति की जरुरत होती है। राज्य सरकारें चाहे तो नयी गोकुल संस्कृति की शुरुआत हो सकती…