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ठाकुर का कोना
वृद्ध दिवस पर वृद्धों की चिंता ?
संयुक्त परिवार का एकल परिवार में बदल जाना भी वर्तमान आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था की अनिवार्य परिणति है। इन स्थितियों से मुक्ति वृद्ध दिवस, बाल दिवस, युवा दिवस, पृथ्वी दिवस और पर्यावरण दिवस मनाने से नहीं, व्यवस्था परिवर्तन से ही सम्भव है।
जयंती विशेष: गांधी को याद करते हुए
बापू ! आज 2अक्टुबर है। आपकी 155वीं जयंती। देश भर में आज के दिन आपको याद करने की, आजादी आंदोलन में आपके योगदान की चर्चा करने की, आपके आदर्शों पर चलने वास्ते कसमे खाने की धूम मची है। आपके नाम का कीर्तन करते, आपके सिद्धान्तों के विरुद्ध आचरण…
अमर हो गए मल्लिकार्जुन !
मल्लिकार्जुन को स्वनामधन्य होना चाहिए, पर ये तो उल्टी दिशा में चल पड़े हैं ? इनके मुख से बयानों की जो मिनरल धारा बह रही है वह निर्मल नहीं, बल्कि मिनरल राजनीति को ही जन्म दे रही है? पाखंड पवित्रता का प्रतीक नहीं होता। मोदी को हटाये बिना प्राण…
समाज को आज जरूरत है एक अदद ‘सूरदास ‘की
किसी रचनाकार की कृतियों का सही मूल्यांकन उसके समय की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पृष्ठ भूमि को नजर अंदाज कर नहीं किया जा सकता। लेखक ने जिन राजनीतिक-सामाजिक परिस्थितियों में इस उपन्यास को लिखा है, वह देश के आजादी आंदोलन का दौर था।
आओ, पार्टी-पार्टी खेलें
पूंजीवादी अर्थनीति के चरित्र से नावाकिफ रहने वाले इसे नहीं समझ पाएंगे, अर्थनीति व्यवस्था क्रांति से बदलती है चुनाव से नहीं..
आ, अब लौट चलें प्रकृति की गोद में
कुत्सित भाव हमें अपनी ममतामयी मां, प्रकृति की गोद से धीरे-धीरे दूर करता चला गया। हम भूल गये प्रकृति मां की लोड़ियां और थपकियां दे-दे कर हमें चैन की नींद सुलाना।
आज निगाहें कितनी खोटी हो गईं !
सवाल व्यापक जन सरोकार से जुड़ा हुआ है एवं वस्तुओं, घटनाओं और परिवेश को देखने-समझने के नजरिए से भी। आज हर कोई एक दूसरे की नजर में खोटा है।
धर्म जब ढकोसला बन जाए तो मेरा अधर्मी होना ही ठीक
आज के हालात देखकर लगता है कि धर्म की यह परिभाषा भी तथाकथित धार्मिकों का एक ढकोसला है
अब नहीं आता गुलाब छड़ी बेचने वाला जोखन
सामने की सड़क पर दो-तीन छोटे बच्चे साइकिल से प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ लगा रहे थे। उनमें एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ थी। वैसे भी मनुष्य का जीवन आजकल एक-दूसरे को पछाड़, आगे निकल जाने की होड़ को समर्पित हो चुका है। बच्चे क्यों अपवाद बनें?
परस्परावलंबित गांव ही कर पाएंगे वैश्वीकरण की चुनौतियों का सामना
भारत गांवों का देश है। यहां के रीति-रिवाज, परम्परा, उन्नत संस्कृति और आपसी भाईचारे की भावना गांव की पहचान रही है। वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में गांव की वह पहचान मिटने लगी है। आपसी रिश्तों में दरारें पड़ चुकी हैं।