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इन दिनों
सीता और शूर्पणखा
दुर्गा पूजा ख़त्म हो गया। सड़कों पर उमड़ी भीड़ अपने-अपने घरों में सिमट गई। वे बैनर, पोस्टर, सजावट सबके सब धुँधले पड़ गये। जगह वही है, स्थान ज़रा भी नहीं खिसका, लेकिन एक सजी दुनिया खिसक गई।
दलित, संन्यासी और धनपशु
चोरी के प्रमाण नहीं हैं, संदेह है और तीन बच्चों को शारीरिक और मानसिक पीड़ा दी गई। गाँव के कुछ लोगों का आज भी कोर्ट चलता है। उनके पास कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका तीनों है। रहे देश में लोकतंत्र!
गाँधी, चैपलिन और बिड़ला
चार्ली चैपलिन ने गाँधी जी के सचिव महादेव देसाई को पत्र लिखा कि मैं गाँधी जी से मिलना चाहता हूँ। गाँधी चार्ली चैपलिन को जानते नहीं थे। जब उन्हें अवगत कराया गया तो वे 22 सितंबर 1931 को लंदन में चार्ली चैपलिन से मिले। दोनों की मुलाक़ात एक घंटे…
सुग्गे, साँझ और बारिश
शहर में साँझ उतरने का अहसास बहुत कम होता है। मैंने उतरती साँझ को क़रीब से महसूस किया है। जब गाँव में था, तो पिता बूंट ( चना) की रखवाली के लिए खेतों पर भेजते थे। होता यह था कि बूंट जब पकने को होता तो साँझ के समय झूंड के झूंड सुग्गे खेतों में…
आदमखोर दुनिया में हम-तुम
हम कैसी दुनिया बना रहे हैं? क्या इस दुनिया में मानव रह पायेगा? पानी बोतल में बंद किया जा चुका है। हवा सिलेंडर में बंद किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि न पानी शुद्ध बचा है, न हवा। भोजन में क्या-क्या नहीं है। कोई दावा नहीं कर सकता कि हम शुद्ध…
मरते लोग, मारते लोग
इज़राइल और गाजा पट्टी वाले युद्ध में 42 हज़ार लोग मारे जा चुके हैं जिनमें 16,765 बच्चे हैं। इसके अलावे 18 हज़ार बच्चे ऐसे हैं जो अनाथ हो चुके हैं। अब इस धरती पर न उसके पिता बचे, न माँ। दस हज़ार लोगों का पता नहीं है और 97 हज़ार फ़िलिस्तीनी…
दुकानें सजी हैं जवान स्त्रियों की तरह
युवा दुनिया में क्या कर रहे हैं? यह जानना दिलचस्प होगा। इनके लिए समस्या रोज़गार नहीं है, न ही इज़राइल-फ़िलिस्तीन हमले हैं और न ही सड़कों पर भूख से बिलबिलाते लोग हैं। ऐसे युवा लंदन और न्यूयार्क जैसे महानगरों में चेहरे चमकाने वाली खुली…
बुद्ध, कामना और विश्व युद्ध
विश्व शांति खतरे में है। अमेरिका, ब्रिटेन भी आंखें दिखा रहा है। दुनिया में मरने मारने के हथियार द्वितीय विश्व युद्ध से हजार गुणा बढ़ा हुआ है। आम जीवन से लेकर ख़ास जीवन में कामनाओं का साम्राज्य है।
अंधेरे में आँख
शिक्षा तो राजनीति के शिकार है। जबकि शिक्षा को ही राजनीति का मार्गदर्शक होना चाहिए। लेकिन वह मार्गदर्शक कैसे होगी
क्रांति की भ्रूणहत्या के अपराधी
देश है, यहाँ क्रांति की दुंदुभी बजती ही रहती है। मैं भी कई बार इस दुंदुभी के शिकार हुआ। दुंदुभी मोहती तो है ही। 1974 में यह दुंदुभी बहुत ज़ोर से बजी थी। अनेक युवाओं की जवानी इस पर भेंट चढ़ गई।