इन दिनों : ऊपर ऊपर पी जाते हैं, जो पीने वाले हैं

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डॉ योगेन्द्र

दो दिनों से सुबह सुबह टहलने के लिए भागलपुर हवाई अड्डे पर जाता हूं। कहने को हवाई अड्डा है, इस पर से कोई जहाज उड़ान नहीं भरता। मौके बेमौके चुनावी मौसम में कभी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री उतरते हैं। सुना जाता है कि बीस हजार करोड़ के घोटाले की मालकिन मनोरमा देवी के लिए स्पेशल जहाज यहां उतरता था। अगर उन्हें छींक भी आ जाये,तो जिलाधिकारी से लेकर नेता तक परेशान हो जाते थे।‌ जिन नेताओं से उनकी रफ्त ज़ब्त थी, उनमें एक आज केंद्र में मंत्री हैं, एक दुलरूआ सांसद हैं और एक का घर ठिकाना छीन गया है। दसियों साल से सीबीआई लगी हुई है, मगर जांच पूरी नहीं हो पा रही। वैसे भी कोई चीज निरपेक्ष नहीं होती तो जांच निरपेक्ष क्यों हो? जांच भी सत्ता की अनुगामनी होती है। सुप्रीम कोर्ट लाख कहे कि सीबीआई तोता है, कोई अंतर नहीं पड़ता। मुझे तो लगता है कि तोते की इससे बेइज्जती होती है। आखिर तोते का अपना सम्मान होता है या नहीं? या जब मन हो, जिस तिस से तुलना कर दें। तोते को विश्व अदालत में सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ मानहानि का मुकदमा करना चाहिए।
खैर। मैं भागलपुर हवाई अड्डे के बारे में कह रहा था। आप जैसे ही अंदर जायेंगे – बारह- तेरह बड़ी बड़ी ट्रक खड़ी मिलेगी। बगल में गुलगुलिया ने पालीथीन की बीसों झोपड़ियां डाल रखीं हैं। उनके बच्चे, कुत्ते, बकरियां और मुर्गे-मुर्गियां। 2024 है। दुनिया में ज्ञान का विस्फोट हो चुका है। कितने ट्रीलियन की अर्थव्यवस्था है और ये लोग आज भी घूमंतू हैं। भरी बारिश में ये खुले मैदान में रहते हैं। न स्नान की सुविधा, न शौच की। तब भी ये दुखी नजर नहीं आते। कभी आपस में लड़ते भी हैं, तो थोड़ी देर बाद ठहाके भी लगाते हैं। उन्हें शायद मालूम नहीं है कि कृत्रिम मेधा का युग आने वाला है। पता नहीं उस युग में भी वे चिड़िया मार रहे होंगे या लुख्खी पर निशाना साध रहे होंगे! इससे आगे बढ़िए तो हवाई पट्टी आयेगी। उसकी उत्तर दिशा में पक्की जमीन है। उस पर बीसों बुड्ढे बेवजह हंस रहे होंगे। जिंदगी बिना हंसी के गुजर गयी। उनके चेहरे की हंसी कब और कहां गायब हुई, उन्हें पता नहीं चला। जिंदगी का सफर ये कैसा सफ़र, कोई जाना नहीं…..। भागते-भागते यहां आ गये तो इन लोगों को कहा गया कि जो हंसी भूल गए हैं, उसे वापस लाइए।
हवाई पट्टी पर जब आप चलेंगे तो आपकी भेंट पचासो भैंस से होगी। वे मस्त चाल से कभी हवाई पट्टी टप रही होगी या कभी उस पर खड़ी पगुरा रही होगी। संभव है कि आप भैंस से न डरें, लेकिन भैंसों के पीछे खड़े भैंसें से जरूर डरें। वे आदमी का लिहाज कम करते हैं। वैसे भी जो ताकतवर होता है, उसमें लिहाज की बहुत कमी हो जाती है। ताकतवर को सिर्फ इतना पता होता है कि उसका लोग लिहाज करें। जो लिहाज न करे, उसे लिहाज करने के लिए मजबूर करे। पानी में ही केवल बड़ी मछली छोटी को नहीं निगलती, लोकतांत्रिक देश में भी बड़े छोटे को निगल जाते हैं। भैंसों से जब आगे निकलेंगे, तो जो दृश्य मिलेगा, उसे सहज ही पचा नहीं पायेंगे। सैकड़ों महिला पुरूष सुबह के निपटान के लिए बैठे – खड़े दिख जायेंगे। अब उनके हाथों में लोटे नहीं होते, बल्कि प्लास्टिक की बोतलें होती हैं। शायद एकाध होते तो मन में कौतूहल नहीं होता, लेकिन इतने स्त्री पुरुष उग आये जंगली पौधों की आड़ में बैठे मिलेंगे, सहज विश्वास नहीं होता। यह देश कितने ही ट्रीलियन के लिए हो जाय, लगता है जानकी बल्लभ शास्त्री की कविता की पंक्तियां ही सच होती रहेंगीं – ऊपर ऊपर पी जाते हैं,जो पीने वाले हैं। कहते हैं, ऐसे ही जीते हैं जो जीने वाले हैं।‌

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