2000 के पहले झारखंड बनाओ रैली होती थी, अब झारखंड बचाओ रैली हो रही है। राजनीति में रैली ज़रूरी होती है। रैलियों से पता चलता है कौन पार्टी जीवित है और कौन मर गयी
कुत्सित भाव हमें अपनी ममतामयी मां, प्रकृति की गोद से धीरे-धीरे दूर करता चला गया। हम भूल गये प्रकृति मां की लोड़ियां और थपकियां दे-दे कर हमें चैन की नींद सुलाना।
यहाँ पीके यानी पुनमिया कुशाल की नहीं, बल्कि मैं प्रशांत किशोर की बात कर रहा हूँ। बिहार के सियासी लोक में इनका अवतरण हुआ है। आमिर खान की तरह यह प्रशांत किशोर भी पिछले दो साल से बिहार में भटक रहे हैं