रावण दहन तो हो गया, लेकिन —–!
अगर हम वर्तमान परिवेश में शक्ति की पूजा को बुराई पर अच्छाई, असत्य पर सत्य की जीत और नारी-अस्मिता की रक्षा की दृष्टि से देखें तो जो स्थिति नजर आती है, वह बड़ी डरावनी है।
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