मरते लोग, मारते लोग

विश्व की संवेदना कितनी भोथरी हो गई है

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डॉ योगेन्द्र

विश्व की संवेदना कितनी भोथरी हो गई है !

इज़राइल और गाजा पट्टी वाले युद्ध में 42 हज़ार लोग मारे जा चुके हैं जिनमें 16,765 बच्चे हैं। इसके अलावे 18 हज़ार बच्चे ऐसे हैं जो अनाथ हो चुके हैं। अब इस धरती पर न उसके पिता बचे, न माँ। दस हज़ार लोगों का पता नहीं है और 97 हज़ार फ़िलिस्तीनी घायल हैं। गाजा की कुल आबादी 23 लाख है और 70 प्रतिशत घर नष्ट हो चुके हैं। साल भर से यह युद्ध चल रहा है और इज़राइल ने औसतन प्रति घंटे 42 बम गिराए। जिनके घर बर्बाद हुए, वे या तो स्कूलों, पार्कों में रहते हैं या समुद्र किनारे तंबू लगाकर। विश्व पंचायत मूक बनी बैठी है। तथाकथित विकसित देश अमेरिका, चीन, इंग्लैंड, जर्मनी, रूस भी कुछ नहीं कर पा रहे या कहिए कि ये देश भी मौक़े की तलाश में है। युद्ध में हथियारों की खूब बिक्री होती है। हथियार बनाने वाले व्यापारी देश हथियार बेच कर मौज मस्ती कर रहे हैं। इज़राइली सत्ताधीश नेतन्याहू का कहना है कि युद्ध नहीं रूकेगा और अंत में उनकी विजय होगी। विजय-हार के इस खेल में कितने लोग मरेंगे और बसे बसाये घर उजड़ेंगे, इसका आकलन मुश्किल है। बावजूद इसके इतना तो कहा ही जा सकता है कि विश्व के लिए यह एक बड़ा ख़तरा है। अगर परमाणु बम का किसी ने इस्तेमाल किया तो भयावह बर्बादी होगी।

देश की एक खबर है कि चेन्नई में एक ऐयर शो हुआ, जिसमें 15 लाख लोग जुटे। इसमें दम घुटने से पाँच लोग मरे और दो सौ बीमार हैं। अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है। कहा जा रहा है कि लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड में यह दर्ज हो गया। ऐयर शो में तेजस, राफ़ेल, सुखोई-30 समेत 72 विमानों ने आकाश में करतब दिखाए। सवाल है कि ऐसे ऐयर शो की ज़रूरत क्यों है? क्या यह राष्ट्र के पैसे और ऊर्जा की बर्बादी नहीं है? 15 लाख लोगों का समय और संसाधन आख़िर किसके हैं? इस देश के पास फ़ालतू काम के लिए इतना समय है? क्या ऐयर शो कर हम अपनी ताक़त का प्रदर्शन कर रहे हैं? हम देश की जनता और विश्व को जतलाना चाहते हैं कि हम बहुत बलशाली हैं? सरहद पर दो चार दिनों में कोई न कोई नौजवान शहीद होता है और चीन ने भारत में घुस कर सड़कें और घरों का निर्माण कर रहा है। चीन और पाकिस्तान से युद्ध लड़ चुके हैं। पूरी दुनिया में हथियारों में जितनी पूँजी लग रही है, उतनी मानवीय भलाई में लगी होती तो दुनिया स्वर्ग हो गई होती।

मणिपुर में हिंसा जारी है और राज्य के अंदर दो राज्य बन गये हैं। एक में मैतई जन जाति हैं और दूसरे में कुकी। मैतई इंफाल घाटी में रहते हैं और वे चीनी और तिब्बती भाषा बोलते हैं। कहा जाता है कि मैतई राजाओं ने ही म्यांमार से कुकी को लाकर बसाया था। मैतई राजाओं ने कुकी का नागाओं के खिलाफ इस्तेमाल किया था। कुकी समुदाय के लोग फ़िलहाल मणिपुर के अलावे पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों में भी फैले हैं। मणिपुर के मुख्यमंत्री कुकी इलाक़े में जा नहीं सकते, क्योंकि वे मैतई समुदाय से आते हैं। देश और राज्य की सरकारें या अन्य प्रभावशाली लोग दोनों समुदायों को आपस में बिठाकर संवाद कर इस मामले को निबटाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन सबके अपने स्वार्थ और अपनी जिद है, नतीजा है कि दोनों मर मिट रहे हैं। स्त्रियों को जिस तरह नंगा घुमाया गया , क्या यह लोकतंत्र पर कलंक नहीं है। इसलिए आज इस बात की ज़रूरत है कि राजनीति से अलग एक समूह बनना चाहिए, जो मानव को केंद्र में रख कर सोचे और अपना वैचारिक और व्यवहारिक योगदान करे।

 

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Dr. Yogendra
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए The Dialogue उत्तरदायी नहीं है।)
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