बुद्ध, कामना और विश्व युद्ध

आम जीवन से लेकर ख़ास जीवन में कामनाओं का साम्राज्य

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डॉ योगेन्द्र
बुद्ध ने कहा कि कामना यानी इच्छा ही दुःख का कारण है। इसलिए दुःख से मुक्त होना है तो कामना पर विजय प्राप्त करो। मोहन राकेश ने एक नाटक लिखा- “लहरों के राजहंस”। इस नाटक की नायिका सुंदरी कहती है कि कामना को जीतने की इच्छा क्या यह भी एक कामना नहीं है? सुंदरी की बात में भी दम है। कामना को जीतने की इच्छा कामना ही है, लेकिन गौतम बुद्ध का भी अपना सच है कि इच्छाओं ने संसार में तबाही लायी है। महाभारत में मनुष्य के रक्त से धरती लथपथ हुई तो इसके पीछे राजगद्दी की कामना ही थी। यह कामना कमोबेश दुर्योधन में भी थी और युधिष्ठिर में भी। अंधे धृतराष्ट्र इस कामना से ही पीड़ित रहे। प्रथम विश्व युद्ध हो या द्वितीय विश्व युद्ध- सत्ता की कामना ही रक्त बहाती रही। विश्व पर तृतीय विश्व युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। इजरायल और फिलीस्तीन के बीच छिड़े युद्ध में ईरान और लेबनान प्रवेश कर गया है और ईरान के राष्ट्राध्यक्ष ने नारा दिया है- आपसी कटुता भूल कर दुनिया के मुसलमानों एक हो।

संयुक्त राष्ट्र संघ मूक बना बैठा है। इजरायल में यहूदी हैं और फिलीस्तीन में मुस्लिम। जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ ने ही द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दोनों देशों को बसाया है। आज दुनिया के नक्शे में इजराइल जिस आकार में है इसके पीछे सालों पुराना इतिहास है। कभी इजराइल के स्थान पर तुर्की का ओटोमान साम्राज्य हुआ करता था, लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की की हार के बाद इस इलाके में ब्रिटेन का कब्जा हो गया। ब्रिटेन उस समय एक बड़ी शक्ति था और द्वितीय विश्वयुद्ध तक यह इलाका ब्रिटेन के कब्जे में ही रहा। द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका और सोवियत संघ दो नई ताकत बनकर उभरे। ब्रिटेन को इस युद्ध में काफी नुकसान उठाना पड़ा। 1945 में ब्रिटेन ने इस इलाके को यूनाइटेड नेशन को सौंप दिया।1947 में यूनाइटेड नेशन ने इस इलाके को दो हिस्सों में बांट दिया। एक अरब राज्य और एक इजराइल। यरुशलम शहर को अंतर्राष्ट्रीय सरकार के प्रबंधन के अंतर्गत रखा गया। अगले ही साल इजराइल ने अपनी आजादी का ऐलान किया। इसी के साथ ही 1948 में दुनिया के एक शक्तिशाली देश का गठन हुआ। इजराइल ने जैसे ही अपनी आजादी का ऐलान किया, इसके महज चौबीस घंटे के अंदर ही अरब देशों की संयुक्त सेनाओं ने उस पर हमला कर दिया। इजराइल के लिए ये लड़ाई कठिन जरूर थी, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। करीब अगले एक साल तक ये लड़ाई चलती रही। नतीजा यह हुआ कि अरब देशों की सेनाओं की हार हुई।

तब से बात बहुत बढ़ चुकी है। दोनों देशों में घमासान मचा है और इसमें दूसरे देश भी दखल दे रहे हैं। विश्व शांति खतरे में है। अमेरिका, ब्रिटेन भी आंखें दिखा रहा है। दुनिया में मरने मारने के हथियार द्वितीय विश्व युद्ध से हजार गुणा बढ़ा हुआ है। आम जीवन से लेकर ख़ास जीवन में कामनाओं का साम्राज्य है। इसलिए ऐसे मौके पर महात्मा बुद्ध, गांधी, मार्टिन लूथर किंग याद आते हैं।

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Dr. Yogendra
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए The Dialogue उत्तरदायी नहीं है।)
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