पावरलेस स्वामी

बाबा आप ने अपना हाथ देखा है क्या ?

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डॉ योगेन्द्र
मुझे स्वामियों से बहुत डर लगता है। बचपन में भूला-भटका एक स्वामी मेरे घर आ गया। मेरी माँ मुझ पर ज़्यादा सदय थी कि क्योंकि मेरी दाहिनी टाँग टेढ़ी और सूखी थी। देखने में भी साँवला था। माँ की और संतानें ठीक-ठाक थीं। कम से कम प्रकृति ने उनके साथ कोई धोखा नहीं किया था। माँ धार्मिक प्रवृत्ति की नहीं थी, लेकिन पुत्र के लिए क्या धार्मिक, क्या अधार्मिक? जहॉं से पुत्र पर कृपा बरस जाये, माँ हर वक़्त तत्पर। उन्होंने स्वामी की खूब आवभगत की और पूछा कि इसका कल्याण कैसे होगा? ज़रा इस पर कृपा बरसाइए। स्वामी ने मुझसे कहा – ए बच्चा। ज़रा हाथ दिखा। मैं बचपन से ही थोड़ा टेढ़ा था। मैंने स्वामी से पूछा कि हाथ देख कर क्या कीजिएगा? उसने कहा- तुम्हारा भविष्य देखेंगे। मैंने फिर पूछा- बाबा, आपने अपना हाथ देखा है? बाबा चकराये। माँ ने मुझे डाँटा- बहुत बक बक करता है। पूर्व जनम में भी यही करता होगा, इसलिए तुम्हारी टाँग टेढ़ी है।

मैं मन मसोस कर रह गया। कुछ भी हो, मॉं को मैं क्या कहता ? मॉं मेरी जननी थी। मॉं ने आदेश दिया- बाबा को हाथ दिखाओ। मैंने आदेश का पालन किया। मेरे दोनों हाथ को बाबा ने उलट पुलट कर देखा और घोषणा की- यह बालक चक्रवर्ती राजा होगा। मॉं यह सुन कर गदगद हो गयी। उसने बाबा को मालामाल कर दिया। मैं सोचने लगा कि चक्रवर्ती राजा क्या होता है? राजे रजवाड़े तो कब के विदा हो चुके। सिकन्दर चक्रवर्ती बनने चला था। लौट कर यूनान पहुँचा तो अपने लोगों से कहा कि जब मैं मरूँ तो रंथी पर लाश लेटी रहेगी, लेकिन हाथ बाहर लटका रहेगा जिससे लोग जान ले कि सिकंदर जब मरा था तो उसके साथ कुछ नहीं गया था। न रथ, न घोड़े, न ज़मीन, न देश। सब यहीं रह गया। हिटलर का चक्रवर्ती बनने का सपना और भी भयानक था। उसने आदमी को ब्लास्ट फर्नेस में डाल कर मारा और द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण बना और अंत में खुद को गोली मार कर मरा।

लेकिन मेरे मन में चक्रवर्ती बनने की इच्छा घर कर गई। उम्र बढ़ती गई और चक्रवर्ती का सपना बढ़ता गया। मन में लगता रहा कि एक दिन ज़रूर कोई चमत्कार होगा और मैं चक्रवर्ती राजा हो जाऊँगा। मॉं तो दुनिया से विदा हो गयी, लेकिन मेरे अंदर का चक्रवर्तित्व का सपना मरा नहीं। पर साल दर साल बीतते गये, मगर चक्रवर्ती बनने का मौक़ा नहीं आया। मेरे कितने दिन और रात को इस सपने ने बर्बाद किया बाद में लगा कि मेरा क्या है, स्वामी तो देश बर्बाद करने पर तुला है। मुझे लगा कि स्वामी कहने को स्वामी है। जैसे मैं नौकरी कर खाने पीने का इंतज़ाम करता हूँ, वैसे ही ये स्वामी होते हैं। अभी मैं देखता हूँ कि बड़े बड़े पदों पर बैठे नेता, अफ़सर स्वामी की दूकान पर पहुँच कर अपने पदों का स्थायित्व की भिक्षा माँगते हैं। क्या बड़े बड़े पदों पर विराजमान महाशय अपनी मेहनत और कौशल से नहीं पहुँचे हैं? आम जनता भी हद है। वह स्वामी की दरबार में गुहार लगाने पहुँच जाती है। मुझे अफ़सोस होता है कि अगर स्वामी के पास अतिरिक्त पावर है तो अपने पावर का इस्तेमाल कर सबका उद्धार क्यों नहीं कर देते? ईश्वर क्या केवल दरबारियों के लिए है? अभी देश में इतने स्वामी हैं कि क्या कहने? हर गली मुहल्ले में स्वामी उपलब्ध हैं। उनके ईश्वर भी उनके साथ रहते हैं और वे अपने ईश्वर को भक्तों के कल्याण में लगाते रहते हैं। ईश्वर पर स्वामी का एकाधिकार है। स्वामी के बिना ईश्वर हिल नहीं सकते। कई स्थल पर तो तांडव हुए। सैकड़ों भक्त कुचले गये। कई स्वामी बलात्कार के मुक़दमे में हवालात में हैं। दरअसल स्वामी पावरलेस है। उसने धर्म को धंधा बना लिया है ।

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