चर्चा है चर्बी की

चर्बी बढ़ाने के लिए चर्बी का उपयोग करना एक कलंक कथा है

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बाबा विजयेन्द्र

चर्चा है चर्बी की। नेताओं की चढ़ी चर्बी चिंता का विषय रही है। बहुत ही चर्बीदार हो रहे हैं लोग। चर्बी का अपना एक वर्गीय चरित्र है। यह चर्बी वर्गविहीन समाज की स्थापना में बहुत बड़ी बाधा है। इस बाधा को दूर करने की सदियों-सदियों से कवायद हो रही है पर यह सवाल सनातन बना हुआ है। चर्बी के प्रश्नों पर रखे भारी पत्थर हटाए नहीं जा सके हैं। खा-खा कर मरते लोग और खाने के लिए मरते लोग,दोनों ही समस्या अपनी मौजूदगी बनाई हुई है। धंसी आँखों वाले लोग जब इन चर्बीदारों को देखते हैं तो मन में इन्हें टीस होती है। खाये पीये अघाये लोगों की यह पहचान है चर्बी। लोग जाल-बट्टा कर चर्बी चढ़ा तो लेते हैं,फिर इसे घटाने के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं। बहुत चर्बी चढ़ गयी है तुम्हारी, आओ उतार देते हैं। इस तरह की बेमतलब की गालियां बचपन से हम सुनते आ रहे हैं। सच है कि बिना मिलावट के यह चर्बी नहीं लटकती। मिलावट चरित्र में हो, आचार-विचार में हो या व्यवहार में हो,हर जगह मिलावट है। कुछ भी और कहीं भी मौलिकता कभी नजर नहीं आती। जिंदगी एक माया है। संसार में दुःख है और इस दुःख के कारण हैं। पर दुःख का कारण यह चर्बी बन जाय,यह चिंतनीय है।
चर्बी बढ़ाने के लिए चर्बी का उपयोग करना एक कलंक कथा है। भगवान के साथ हो रही धोखाधड़ी अभी चर्चा में है। आस्था और विश्वास के साथ इस तरह का व्यवहार आखिर कौन कर रहा है? आमलोग तो आम लोग ही हैं। इनकी धर्मभीरुता आजतक धर्मपरायणता नहीं बन सकी? अभी तिरुपति मंदिर के पुजारी के परिवार का एक फोटो मीडिया में तैर रहा है। तस्वीर में एक पुजारी की चर्बीदार काया और उस पर सवा क्विंटल सोने की लटकती जंजीरें दिख रही हैं? परिवार की महिलायें भी नजर आती हैं वे भी सोने से लदी हुई हैं। निश्चित तौर पर इतने सारे चमकते सोने पकौड़े तलने के कारण तो नहीं ही आये होंगें? इसके मूल में मूर्खों की दानवीरता ही रही है। यह तस्वीर आस्था के साथ मिलावट को बयां करती है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि जब तक धरती पर बेवकूफ रहेंगे तब तक होशियार कभी भूखा नहीं मरेगा? तिरुपति तो केवल एक उदाहरण भर है। ठगी की ऐसी असंख्य रचना और संरचना देश में खड़ी कर दी गयी हैं जिससे मनुष्यता का बाहर निकलना फिलहाल मुश्किल नजर आता है। पहले खूब मिलावट करो। उससे अकूत संपत्ति अर्जित करो। फिर उस संपत्ति से मंदिर बनाओ। मंदिर बनाने में फिर घपला करो। चढ़ावा में घपला करो। फिर प्रसाद में  मिलावट करो? यहाँ यही सब हो रहा है। यही है हिन्दू समाज का धर्म चक्र परिवर्तन ! तिनके-तिनके के लिए तरसते देश के नौजवान हमारा सवाल नहीं है। सवाल है तिरुपति ? तिरुपति जब बगल के पापियों को सजा नहीं दे सकता, तो दूर बैठे भ्रष्टाचारियों की क्या बात करना ?
लड्डू में हुई मिलावट की चिंता में मरे जा रहे लोगों का यह एक पाखण्ड है। यह एक दोहरा चरित्र है समाज का। हर एक कदम पर मिलावट है। असली और नकली की पहचान समाप्त हो गयी है। सब कुछ सिंथेटिक। संत भी और उसके साधक भी? कितना बड़ा यह धार्मिक देश है जिनकी जेलों में भी संत रहते हैं ? यह है हमारी मिलावटी सभ्यता जिसपर हम गर्व से सीना फूला रहे हैं? इस मिलावट के बल मिलावटी-विश्वगुरु ही बना जा सकता है। करोड़ों लोगों की थाली पर एक बार नजर डाल दें तब आपको पता चलेगा कि यह भोजन है या जहर है। थाली में मौजूद सामग्रियों में मिलावट के सिवाय कुछ नहीं है।आटा, चावल, दाल, तेल, मसाला, सब्जी, घी, दूध,फल की एक बार जांच कर देखें कि यह पूरे तौर पर जहर है या नहीं?तिरुपति के प्रसाद में मिलावट पर मूवमेंट शुरू हो गया है, पर इन आमलोगों का क्या जो जहर खा रहे हैं? क्या इनके प्रति हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है ? पत्थर के भगवान की इतनी चिंता है पर जहर खाती इस मनुष्यता की कोई चिंता नहीं? क्या उन शैतानों पर हम कुछ बोलने के लिए तैयार हैं, जो मिलावटखोर हैं , मुनाफाखोर हैं? शायद नहीं। मनुष्यता को दांव पर लगाकर मिलावट करने वालों के खिलाफ हमारी चुप्पी क्यों नहीं टूटती ? सच है कि इनका धंधे मातरम ही,वंदे मातरम् है। धर्म की भी ठेकेदारी इन्हीं की है? सारे अधार्मिक लोग धर्म के ठेकेदार बने बैठे हैं। आप ही विचार करें कि हिंदुत्व पर ख़तरा किनसे है। मुसलमानों से या इन मुनाफाखोरों से?
पूरी सभ्यता रुग्ण हो चुकी है। यह एक बीमार देश बन चुका है। अस्पताल के बाहर लगे मेले का मुआयना कीजिये। जहर खाकर बीमार हुए लोग हैं ? स्वस्थ भोजन,स्वच्छ भोजन संतुलित भोजन की व्यवस्था करना यह व्यवस्था का काम नहीं है ? प्रसाद सेक्युरिटी स्टेंडर्ड ऑफ़ इंडिया ? कहाँ गया एफएसएसआई का मानक ? जनता इसलिए जिन्दा है कि वह मरती नहीं है।
मिलावट के खिलाफ योगी आदित्यनाथ ने कुछ बयान दिया है। इनको मिलावट कम मुसलमान ज्यादा दिखता है ? इनके थूक मूत पर खूब डंडा चलाओ और चलाना भी चाहिए पर मुनाफाखोरों का क्या ? इनके बगल के कानपुर पर बिक रहे दो सौ रुपये किलो चर्बी वाले घी का क्या होगा ? इसी चर्बी वाले घी से दिवाली की मिठाईयां बनेगी। भगवान् को भोग लगेगा ? मुझे लगता है क़ानून का डंडा तो चले ही इन्हें धर्मच्युत करने की भी जरुरत है।
कृष्णायन हरिद्वार की एक संस्था है जो वर्षों से गोपालन, जैविक खेती, जैविक भोजन की बात कर रही है। इस संस्था द्वारा बड़े पैमाने पर मिलावट की संस्कृति को रोकने की पहल भी हो रही है। यहाँ के प्रणेता जो अनाम संत हैं जो महाराज के रूप में ख्यात हैं की चिंता इस दिशा में शुरू से रही है। महाराज का मानना है कि कुंए में भांग घुली है। दर्द एक जगह हो तो इलाज भी किया जाए। इस बीमार समाज की थ्रोली चेकअप की जरूरत है। कॉस्मेटिक चेंज से बात नहीं बनेगी। अन्न और मन सबको दुरुस्त करना पड़ेगा।
उनका कहना है हर थाली में भोजन एक प्रसाद स्वरूप ही रहा है। इसमें अपवित्रता की कल्पना नहीं की जा सकती थी। पर थाली में जहर एक हकीकत है। भगवान वेंकटेश्वर तो संसार के पालनकर्ता हैं। उनकी संतान जहर खाएं और वे बिना मिलावट का लड्डू ग्रहण करें यह उन्हें भी अच्छा नहीं लगेगा। मिलावट के खिलाफ एक धर्म-युद्ध की जरूरत है। मनुष्य को जहर खिलाना एक धर्म की ही ग्लानि है। इसे सुधारने के लिए क़ानून के डंडे के साथ धर्मदंड को भी प्रभावी बनाने की आवश्यकता होगी।

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