निडर योद्धा और डर का व्यापार

रवि प्रकाश हर वक्त प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे

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डॉ योगेन्द्र
पत्रकार रवि प्रकाश को लंग्स का कैंसर 2021 में डिटैक्ट हुआ। जब डिटैक्ट हुआ तो कैंसर का चौथा फेज था। जाहिर था कि नाउम्मीदी चेतना पर पसर गई थी। मगर रवि प्रकाश ठहरे नहीं, न हताश-निराश हुए। वे लगातार सक्रिय रहे, लिखते, पढ़ते, हंसते गुजर गये। कोई और होता तो कमरे में बंद होकर हरे राम करते, रोते और उदासी में डूबे हुए गुजरते। मगर रवि प्रकाश रवि ही थे। होनहार, प्रतिभाशाली तो थे ही, निडर और दृढ़ स्वभाव के थे। मैं खुद के बारे में सोचता हूं। मैं बहुत बार मृत्यु से डरा। संकट आया तो डटा भी।‌ तब भी डर मेरी जिंदगी में बार बार आया । कहना चाहिए कि यह डर यशपाल की कहानी दुःख के पात्र हेमा की तरह था। कृत्रिम, खाये पीये अघाये लोगों का। रवि प्रकाश के सामने वास्तविक डर था, मगर उन्होंने डर को डरा दिया। ‘ आनंद ‘ फिल्म में राजेश खन्ना का कैंसर तो कृत्रिम था, रवि प्रकाश तो वास्तविक कैंसर से जूझ रहे थे।‌ आनंद भी प्रेरित करता है, लेकिन रवि प्रकाश हर वक्त प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे।

वैसे भारत धर्म भीरू देश है। डर उसकी चेतना में है। गीता में भले लिखा हो कि आत्मा न जन्मती न मरती है। इसे न आग जला सकती है , न शस्त्र काट सकता है, लेकिन व्यवहार में भारतीय थर-थर कांपता है। इसलिए मंदिरों में भीड़ दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। कोई दुर्घटना घटी तो राम राम करने लगते हैं। यह नहीं होता कि विश्लेषण करें कि यह दुर्घटना किन वजहों से घटी।‌ आजकल तिरूपति मंदिर चर्चा में है। लोग कह रहे हैं कि प्रसाद के रूप में हर दिन बांटे जाने वाले लड्डुओं में चर्बी मिलायी जाती है। मंदिर में यही लड्डू भोग के रूप में चढ़ाया जाता रहा। मंदिर के देवता ने कभी आपत्ति नहीं की, न किसी को सजा दी। वे भोग में लीन रहे, लेकिन जिन भक्तों ने ऐसे लड्डुओं को खाया, पचाया, उन्हें उल्टी हो रही है। उनकी तो भक्ति मारी गई। चैनलों पर सबसे बड़ी समस्या इन लड्डुओं में मिलावट है। धड़ाधड़ नेताओं के बयान पेले जा रहे हैं। कुछ दिन यह तमाशा जारी रहेगा। दो चार पकड़ धकड़ होगी और बात की लीपापोती हो जायेगी।

यह देश भ्रष्टाचारियों का है। आज बाजार में कौन सामान है जो शुद्ध है? दूध, घी, तेल , चावल, आटा , पानी तक शुद्ध नहीं है। यहां तक कि दवा भी इससे मुक्त नहीं है। नये नये स्टीकर साट कर धनपशु डर को बेच रहे हैं। मेरा सामान शुद्ध और प्राकृतिक है। पैसे वाले इस नारे से मोहित होकर पहुंच जाते हैं। अदना पानी की बोतल। कोई गंगाजल बेच रहा है, कोई काम्टी फाल का पानी। अरबों का व्यापार है। रोज हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई निगल रहे हैं। कोई तू तड़ाक भी नहीं करता। इस मामले में ख़ाद्य मंत्री मर चुके। पूरे विभाग के अफसर अमला मर चुके। मर चुकी जनता जिसके मुंह में बकार नहीं है। मंदिर मस्जिद का सवाल आयेगा तो सभी भाले फरसे लेकर सड़क पर उतर आयेंगे, लगता है कि ईश्वर या अल्लाह इनकी रक्षा नहीं, यही उनकी रक्षा कर रहे हैं। धार्मिक संस्थानें तो डर का ही व्यापार करती हैं। कथा वाचकों की फौज क्या है? किसी पर हत्या का आरोप है, कोई बलात्कारी बना बैठा है। जो पकड़ाया नहीं है, वह डर का व्यापार कर रहा है। मैं नहीं देखता कि आज कोई भी दल या संगठन बाजार के अशुद्ध, निर्मम और लुटेरे व्यापार पर कुछ बोल रहा है। नेताओं के कड़कदार कुर्ते और पैजामे, अफसरों के सूट बूट में कोई कमी तो है नहीं। वे क्यों चिंता करें और जिन्हें चिंता करनी है, वह धर्म, जाति और अंधविश्वास के शिकार हो गए हैं।

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