चिपकू समाजवाद

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वह ज़बर्दस्त क्रांतिकारी था। उसके अंदर क्रांति उफान मार रही थी। इसलिए अपने नाम में क्रांतिकारी जोड़ लिया था- अभय क्रांतिकारी । उस समय हवा में क्रांति ही क्रांति थी। 1974 का समय था। 6 नवम्बर को पटना में एक बूढ़े को पुलिस ने पीट दिया था और 9 नवम्बर को धर्मवीर भारती ने एक कविता लिखी थी-

खल्क ख़ुदा का, मुल्क बादशाह का ,
हुकुम शहर कोतवाल का ,
हर ख़ास और आम को आगाह किया जाता है ,
कि ख़बरदार रहें और,
अपने अपने घर के किवाड़ों को कुंडी लगाकर बंद कर लें ,
गिरा दें खिड़कियों के परदे और,
अपने बच्चों को सड़क पर न भेजें,
क्योंकि, एक 72 साल का बूढ़ा आदमी,
अपनी काँपती कमजोर आवाज़ में ,
सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है ।

अभय क्रांतिकारी ने सोचा कि बूढ़ा तो सड़क पर क्रांति कर रहा है। वह घर से क्रांति करेगा। उसने पिता को कहा कि आप बुर्जुआ हैं। सत्ता के दलाल हैं। मैं आपसे संघर्ष करूँगा ।आई विल फाइट । पिता ने समझाया- मैं तुम्हारा पिता हूँ । अभय क्रांतिकारी ने उत्तर दिया- यह दुर्भाग्य है मेरा कि आप मेरे पिता हैं।
पिता हतप्रभ थे और अभय क्रांतिकारी मौज में था कि आज पिता को क्रांतिकारी जवाब दिया है । उसने घर त्याग दिया। कहीं से उसने लाल किताब लायी और उसे घोकने लगा।
उसका एक दोस्त था- हिम्मत सिंह कानपुरी । वह जब अभय क्रांतिकारी से मिला तो बिना कुछ कहे उसने लताड़ा- हिम्मत नाम रख लेने से कोई हिम्मतबाज नहीं हो जाता। अगर हिम्मतबाज होना है तो क्रांति करो।
हिम्मत सिंह कानपुरी ने पूछा कि कैसे करें क्रांति?
‘ पहले अपने बुर्जुआ बाप पर थूक कर आओ। घर फूंक दो पहले। ‘ अभय क्रांतिकारी ने उपाय सुझाया ।
‘ घर फूंक कर जायेंगे कहॉं? ‘ हिम्मत सिंह ने पूछा ।
‘ कायर, सेलफिस, ग़द्दार ….तुमसे कुछ नहीं होगा।’ अभय क्रांतिकारी ने धरती पर थूका।
हिम्मत सिंह कानपुरी ने सोचा कि लगता है, अभय क्रांतिकारी खिसक गया है।
हिम्मत सिंह कानपुरी ने हिम्मत जुटायी ।कहा- घर वापस चले जाओ। तुम्हारे पिता तुम्हें ढूँढ रहे हैं।
‘ डेम फ़ुल, मेरे पिता बुर्जुआ हैं। मैंने उसे त्याग दिया है। वे ब्राह्मणवादी हैं। दहेज लेकर मेरी शादी उन्होंने जाति में करवा दी , मैं उन पर थूकता हूँ ।’ अभय क्रांतिकारी ने रफ़्तार पकड़ ली थी।

हिम्मत सिंह कानपुरी ने कहा कि लोग तो कहते हैं कि तुम्हारे पिता ने कोई दहेज नहीं लिया। ‘ झूठ कहते हैं । मेरे ससुर ने धोती दी, चप्पल दी। मेरे पिता ने सब समेट लिया। केवल रूपया टका ही दहेज होता है । गिफ़्ट क्या है?
हिम्मत सिंह कानपुरी ने सोचा कि अगर क्रांति ऐसी होती है तो बड़ी विकट है! थोड़ी देर दोनों शांत रहे फिर अभय क्रांतिकारी ने कहा कि तुम पूंजीवाद हो। मैं समाजवाद हूँ । मैंने घर छोड़ दिया है। तुम पकड़े हुए हो। घर छोड़े बिना कोई समाजवादी नहीं हो सकता।
‘ जिससे शादी तुम्हारी हुई है, उसका क्या होगा? ‘ हिम्मत सिंह कानपुरी ने पूछा।
‘ वह पूंजीवाद है। पूंजीवाद को मुझे मारना है। मेरे घर में दो दो पूंजीवाद है। एक मेरे पिता, दूसरी मेरी पत्नी । मैंने पूंजीवाद को त्याग कर लाल किताब अपना ली है।’
ठीक उसी वक़्त समाजवाद के पिता पूंजीवाद आ गये।
‘ खाना खाया है? कहॉं भटक रहा है? पत्नी रो रही है और तुम लाल किताब लेकर टहल्ला मार रहे हो।’ पिता ने कहा।
अभय क्रांतिकारी बहुत खुश हुआ कि घर में पूंजीवाद रो रहा है। पूंजीवाद रोयेगा, तभी तो समाजवाद आयेगा । वह घर वापस लौटा यह देखने के लिए कि घर में पूंजीवाद की क्या हालत है? घर आकर वह पूंजीवाद से चिपक गया। उसे लगा कि पूंजीवाद को ज़्यादा रूलाना ठीक नहीं, तब से समाजवाद और पूंजीवाद दोनों चिपके पड़े हैं ।

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