भू सर्वेक्षण : बहुत कठिन है डगर पनघट की

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बिहार के गांवों में इन दिनों भूमि सर्वेक्षण की धूम मची हुई है। रैयतों को निर्धारित समय सीमा के भीतर अपनी जमीन के दावे सम्बंधी कागजात ,खतियान , दस्तावेज,लगान रसीद आदि के साथ आवश्यक जानकारी विहित प्रपत्र में सर्वे कार्यालय में जमा कर देना है‌। अब अपनी जमीन के कागजात जुटाने के लिए रैयत भागे – भागे फिर रहे हैं।कोई हलका कर्मचारी की चिरौरी कर रहा है , कोई अंचल कार्यालय का चक्कर लगा रहा है तो कोई शपथपत्र बनवाने के लिए कोर्ट -कचहरी दौड़ रहा है। जिनकी जमीन का खतियान उनके दादा , परदादा के नाम है और फिलहाल उनके उत्तराधिकारी दो-तीन ,चार -पांच भाई -बहन हैं ,तो पुश्तैनी जमीन पर दावे के लिए वंशावली जरूरी है। इसके लिए पहले कार्यपालक दंडाधिकारी से शपथपत्र बनवाने की बाध्यता है। फिर वंशावली के आवेदन पर चार गवाहों के हस्ताक्षर के साथ , वार्ड सदस्य , आंगनबाड़ी सेविका,पंच और मुखिया की अनुशंसा करा कर ग्राम कचहरी के सरपंच और पंचायत सचिव से वंशावली निर्गत करने की गुहार ,मनुहार। उधर से जवाब मिलता है ,15 दिन बाद। इस सर्वे ने बहनों की पूछ काफी बढ़ा दिया है। अभी कल तक जो ननदें अपनी भाभियों को फूटी आंख नहीं सुहाती थीं , अब उसके मायके से नेग भेजा जाने लगा है , उसकी खूब खातिरदारी और आवभगत होने लगी है। जानते हैं ,ऐसा क्यों हो रहा है ?नहीं जानते होंगे तो जान लीजिए।सरकार ने कानून बना कर पिता की सम्पत्ति में बेटी का भी बराबर का अधिकार दे दिया है। इससे पिता की जमीन में बहन के हिस्से की जमीन भाई के नाम तभी होगा, जब बहन शपथपत्र देकर अपना हिस्सा लेने से इन्कार कर देगी। इसलिए भाई अपनी बहन के साथ कचहरी जाकर शपथपत्र बनवाने में जुट गया है। यहां भी भाई द्वारा बहन का हक हड़पने की साज़िश। अब एक झलक कचहरी में शपथपत्र बनवाने हेतु टिकट लेने के जद्दोजहद की। यहां एक ही टिकट काउंटर है और लाईन बहुत लम्बी। जरूरतमंद अपने -अपने गांव से अहले सुबह चलकर 7 बजे सुबह ही टिकट काउंटर के सामने लाईन में लग जाते हैं। दस बजे काउंटर के खुलते ही धक्का मुक्की शुरू।किसी का कुर्ता फटता है तो किसी का गमछा नीचे गिरता है ,जिसे उठाने में वह खुद गिरता है ,खरोंचें लगती हैं।।ऐसे में जिसने टिकट पा लिया वह विजेता बन सीना फुलाए लाईन से बाहर निकल शपथपत्र बनवाने की अगली प्रक्रिया पूरी करने में जुट जाता है।चार बजते ही टिकट काउंटर बंद। जिन्हें टिकट नहीं मिल पाया ,उनके चेहरे पर चिंताजनित उदासी। कल फिर लाईन में लगने की मजबूरी। वैसे शपथपत्र के टिकट का मूल्य सौ ,सवा सौ रुपये है ,लेकिन बिचौलिए उसे तीन से चार सौ रुपये में उपलब्ध करा देते हैं। जिन वकीलों की कचहरी में नहीं चलती ,वे इन दिनों गांव का रुख कर अपना ठौर तलाश लिए हैं।उनके यहां भी भीड़ जुटने लगी है। डेढ़ से दो हजार रुपये के साथ अपनी वंशावली का नमूना उनको सौंप इस ओर से निश्चिंत हो जाइए।हफ्ता दो हफ्ता में शपथपत्र आपके हाथों में।
जिसकी जमीन की वर्षों से दाखिल -खारिज नहीं हुआ ,जिस रैयत की जमाबंदी नहीं है ,या जमाबंदी में त्रुटि है, त्रुटियों का परिमार्जन नहीं हुआ ऐसी अनेक समस्याएं। सब के सब परेशान। कहीं कोई सुनने वाला नहीं। अभिलेखागार से दस्तावेज और खतियान का नकल लेने के लिए बिचौलियों के हाथ लुटने की मजबूरी। ऐसे में कहीं -कहीं वाम राजनीतिक दलों की बैठकें शुरू हो चुकी हैं।इसमे भूदान ,सिकमी ,
गैरमजरुआ जमीन पर दखल कब्जा , दाखिल -खारिज और परिमार्जन के लम्बित मामलों का अविलंब निष्पादन एवं इससे सम्बन्धित कागजात उपलब्ध कराए जाने की मांग को लेकर धरना -प्रदर्शन की बातें होने लगी हैं। ऐसे ही मामले में 70 वर्ष का शंकर अपनी जमीन का कागजात तलाशने के लिए दर-दर की खाक छान रहा है। 1960 के सर्वे और चकबंदी में उसके मौजा का चकबंदी फाइनल नहीं हुआ था। यहां अब भी 1885 के सर्वे वाले कागजात के आधार पर ही रैयतों को उनकी जमीन पर दखल – कब्जा है। शंकर के पास जमीन का पुराना कोई कागजात नहीं है।वह बेचैन है।यह बेचैनी सिर्फ शंकर की नहीं ,शंकर जैसे उन तमाम रैयतों की है जिनके पास जमीन के वांछित कागजात नहीं है। ऐसे में रैयतों द्वारा अपनी जमीन से सम्बंधित घोषणा पत्र (प्रपत्र 3(1) और प्रपत्र 2 भरकर शिविर में जमा करने की समय सीमा निर्धारित कर दी गई है। फोटोस्टेट की दुकानों पर इन प्रपत्रों की छायाप्रति कराने के लिए भी भीड़ लगने लगी है। सर्वत्र बेचैनी और भीड़।

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