बिहार में बयानों के बयार हैं,निशाने पर नीतीशे कुमार हैं

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बिहार में बयानों के बयार हैं,निशाने पर नीतीशे कुमार हैं। बिहार में मौसम ने फिर पलटी मारी है। यहाँ रह-रहकर बारिश हो रही है। यहाँ का मौसम अचानक बदल गया है। क्यों मौसम करवट ले रहा है,यहाँ के मौसम वैज्ञानिक कुछ ज्यादा ही अंदाजा लगा रहे हैं।आकाश बादलों से घिरा हुआ है। भादो बीत रहा है। बाढ़ की तबाही का खौफनाक मंजर तो सामने वैसे नहीं है,पर पिछली तबाहियों की परछाई बिहार का पीछा अवश्य कर रही है। इस प्रकार की परछाई चिंता तो पैदा कर ही देती है?

मौसम का मिजाज देख सत्ता भी अपना मिजाज बदल रही है। सत्ता फिर करवट लेगी या किस करवट लेगी ? जितना मुँह उतनी बातें हो रही है। राजग गठबंधन पर भदवा लगता दिख रहा है। आशंकाओं के बादल उमड़-घुमड़ रहे हैं। सत्ता बदलने के पहले जैसा वातावरण होता है या बनाया जाता है,वैसा ही कुछ माहौल अभी बनता दिख रहा है। वही कहानी फिर अभी ? सत्ता पलटने की आशंका निराधार नहीं है। कुछ तो गड़बड़ है भाई। जहाँ धुंआ है,यह बताता है कि वहां आग है।

सत्ता-परिवर्तन की इस आहट ने सबको घबराहट में डाल दिया है।आग जब लगती है तो जान और माल के सुरक्षा की चिंता यूँ ही बढ़ जाती है। सभी दल अपनी दुकानों को दुरुस्त करने में लग गए हैं। कौन किसके यहाँ डाका डाल दे,कहना कठिन है? राजनीति जब अनैतिकता और अमर्यादा के दौर से गुजर रही हो तो वह राजनीति कमोडिटीज में बदल जाती है। एक दम ही निष्प्राण और निर्जीव ? आलाकमान के सामने किसकी हैसियत है कि कोई चूँ-चपड़ कर लें। विधायक तो दलों के दास जैसे ही हैं? इन्हें किसी भी तरह से, कहीं भी, हांका जा सकता है। ये तो दलों की सम्पत्ति भर हैं। हर तरह से इस्तेमाल हो जाने को ये अभिशप्त हैं। नेता क्या फैसला लेंगें और कब फैसला लेंगे, इन्हें क्या पता ? इन्हें केवल तमाशबीन बने रहना है? क्यों पलटना और क्यों नहीं पलटना,सभी इनके लिए गैर-वाजिब सवाल हैं।

खैर, बिहार में प्रमुख दलों की आपात बैठक शुरू हो गयी है। किसी भी परिस्थिति के लिए पार्टी को कैसे खड़ा रहना है, यह मन्त्र-पाठ इन दलों में शुरू हो गया है। राजद,जेडीयू और भाजपा ने अपने सभी विधायकों,पार्षदों और पूर्व प्रत्याशियों को बुलावा भेजा है। किसी भी स्थिति में कोई बैठक मिस न करें,यह हिदायत दी गयी है। लालू ने सिंगापुर से लौटते ही अपने विधायकों और पार्षदों की बैठक बुला ली है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी आज अपने पार्टी के अधिकारियों और अपने विधायकों की बैठक ले रहे हैं। नीतीश और तेजस्वी की भी मुलाकात हुई है। दोनों नेता यानी चाचा-भतीजा इस कदर मुस्कुराते नजर आये कि यह खबर बन गयी और स्क्रीन पर तैरने लग गयी है। बातें इस कदर तूल पकड़ ली हैं कि नीतीश कुमार को बाहर आकर बयान देना पड़ा है। बहाना कुछ भी हो लेकिन जो कुछ हो रहा है बिहार में यह किसी के लिए खट्टा और किसी के लिए मीठा साबित होने वाला है।

नड्डा की भी मुलाकात नीतीश से हुई है। इस बैठक में पलटने की पटकथा पर निश्चित ही चर्चा हुई होगी? आखिर नीतीश को यह क्यों कहना पड़ा कि वो अब कहीं नहीं जाएंगे? गलती हो गयी कि वे दो बार राजद के पास चले गए थे? वैसे नीतीश के गिड़गिड़ाने की यह नयी कला है। हो सकता है कि नितीश का व्यहार नए प्रकार की राजनीति का हिस्सा हो ? नड्डा के सामने नीतीश ऐसे नजर आये कि मानो नीतीश ने कोई गुनाह कर दिया हो? स्कूल में मास्टर जब छात्र की पिटाई करते हैं तो छात्र ऐसे ही गिड़गिड़ाते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के साथ भी नितीश कुमार ऐसा ही बोलते और व्यवहार करते नजर आये हैं। यह किसी बड़े दाव का हिस्सा हो सकता है?
नीतीश कुछ न भी बोले तो भी इनका मिजाज मोदी से जुदा है। केंद्र सरकार के इधर के फैसले या ढुलढुल रवैये से नीतीश खासे नाराज हैं।

नीतीश अभी कहीं जाय या नहीं जाय,पर चिराग-फेक्टर के बाद यह प्रशांत-फेक्टर इनके के सामने है। इससे भाजपा की क्षति कम, इन दोनों चाचा भतीजा की क्षति ज्यादा ही होने वाली है। चिराग भी इस चुनाव में तबाह होंगें? निश्चित रूप से प्रशांत, इंडिया-ब्लॉक के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। प्रलय के वक्त सभी भयभीत लोग एक डाल पर आ ही जाते हैं? भय इस कदर बढ़ रहा है कि इन दोनों को एक होना ही पड़ेगा, अन्यथा दोनों परेशान हो जायेंगे?

संभव कुछ भी है। राहुल गांधी प्रधानमंत्री,नीतीश कुमार गृह मंत्री, तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री,नायडू उपप्रधानमंत्री हो जाय तो कैसा रहेगा? या फिर नीतीश और नायडू दोनों उपप्रधानमंत्री और अखिलेश यादव गृहमंत्री हो जाये तो कैसा रहेगा ? मित्रों यह केवल कल्पना नहीं है और सियासत का यह सच इस कल्पना से भी आगे निकलता जा रहा है। वैसे इंडिया ब्लॉक के इन्हीं पांच छह के बीच खिचड़ी पकनी है?
नरेंद्र मोदी अभी और कमजोर होंगें। वक्फ बोर्ड ,मदरसा ,जनगणना जैसे सुलगते सवाल हैं जिससे इनके सहयोगी भी असहज हैं। और ये भविष्य के लिए खतरनाक साबित होने वाला है। भाजपा भी सारे खेल को समझ रही है। हिंदुत्व को अचानक धारदार बनाना यूँ ही नहीं है।

भाजपा अपनी बुनियाद को पुख्ता कर रही है। अगर सवर्ण-अवर्ण की लड़ाई परवान चढ़ गयी तो भाजपा का स्पेस क्या होगा? भाजपा को भी पता है कि कुछ भी चीजें राजनीति में स्थायी नहीं होती। अभी जहाँ चुनाव हो रहा है। इस चुनाव के हार जीत भी बिहार की राजनीति को प्रभावित करेगी। नीतीश के बयान को स्थायी न मान लिया जाय। कभी पलटने की खबर आप के सामने आ सकती है। थोड़ा इंतज़ार करें।

नितीश कुमार को पलटने के पुख्ता कारण की तलाश है।यूँ ही टूट जाने में कोई फायदा नहीं है। शहीद होने का जुगाड़ किया जा रहा है। भाजपा मुसलमानों के तीव्र विरोध में जब आ जाय, तो नीतीश इस बहाने सरक लेंगे? या फिर पलटने की कहानी भाजपा अपने लिए ही गढ़ रही है, यह भी संभव है। सेकुलर नेता भाजपा के घर से कोई पैदा हो जाय तो क्या बुरा है? बाद में फिर मिल ही जाना है। लालू की संभावना को शून्य कर देने की भी यह कवायद हो सकती है। प्रशांत इस पटकथा के फ्लेट-करेक्टर साबित हो सकते हैं। परदे के पीछे क्या है ? इस परदे के पीछे कोई दिल-विल नहीं है। सत्ता की बेजान हसरतें धड़क रही हैं। दलों की ये धड़कनें हमें सुनायी दे रही हैं शायद आपको भी सुनायी दे रही होगी?

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