राजनीति के मोहरे हैं अब विकास लिंडा

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विकास लिंडा की मौत हो या डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार – वे कब और कहां राजनैतिक हथियार बनेंगे, यह कहा नहीं जा सकता। नेता गण गिद्ध बने बैठे हैं। तत्काल लाश नोचने लगते हैं। असम के दुर्नाम मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा ने तो झारखंड में गंध मचा रखी है। लगता है कि वे असम के नहीं, झारखंड के मुख्यमंत्री हैं। कुछ से कुछ बोलना, नफ़रत फैलाना और समाज को तबाह करने के लिए तत्पर रहना उनकी आदत है। विकास लिंडा की मौत क्यों हुई? क्या आगे ऐसी मौत नहीं होगी? हेमंत सरकार ने उत्पाद विभाग में हो रही बहाली को रोक दिया है, लेकिन सवाल तो है ही कि दौड़ने में बारह विकास लिंडा की मौत कोई मामूली बात नहीं है। एक घंटे में दस किलोमीटर दौड़ना जरूरी है। उत्पाद विभाग कह रहा है कि डिहाइड्रेशन के कारण ऐसा हुआ। अगर यह बात है तो उत्पाद विभाग को अंदाजा नहीं था कि ऐसी दौड़ में ऐसा होगा तो क्या किया जायेगा? गांव घर में बच्चों को ढंग का खाना नहीं मिल रहा। पोषणयुक्त आहार क्या पेट नहीं भर रहा।

हम विभाग चलाते हैं, यंत्र की तरह।‌आदमी का ख्याल नहीं रखना है। हमने नियम बना दिया और उसी पर दौड़ते रहना है। विभाग आदमी के लिए है या यंत्र के लिए? इस देश को यंत्र बना देना है। हर दिन नया नया क़ानून बुकते रहना है। सड़क पर चल रहा है कोई। उसे मालूम नहीं है कि उस पर कितने कानून सक्रिय है।‌अदना पुलिस भी जब डंडा सीधा करता है तो लगता है कि उससे कानून निकल रहा है।‌विकास लिंडा तो मुक्त हो गया। अब उस पर कोई कानून काम नहीं करेगा। उसके पास एक छोटा सा सपना था कि उत्पाद विभाग में नौकरी होगी तो उसका और उसके परिवार का जीवन बदलेगा। उसे अरबपति नहीं बनना था। बहुत ही मामूली सपना था उसका।‌लेकिन उसको क्या पता था कि यह लोकतंत्र मामूली सपनों के लिए नहीं है। उसकी लाश पर नेता गण श्मशानी गीत गा रहे हैं।
विकास लिंडा आज राजनीति का मुद्दा है। चुनाव के बाद वह न मुद्दा रहेगा, न विकास लिंडा के लोग विकास नीतियों के केंद्र में होंगे।

खियाली सोचता है कि सब-कुछ ऐसे ही चलता रहेगा? लोकतंत्र क्या बार बार अपमानित होगा? आम लोगों की बात नहीं सुनी जायेगी? लोकतंत्र का चालक मजे में रहेंगे और जनता पीड़ित होती रहेगी? क्या कोई उपाय नहीं है जिसमें आम लोगों की बात सुनी जाय और स्थानीय स्तर पर इतना संसाधन हो कि लोगों को यहां से वहां भागना नहीं पड़े? दिल्ली , रांची और पटना में जो संचालक नेता आज मौज में हैं। जनता एक वोट देकर अपना भविष्य नेताओं के पास गिरवी रख देती है और नेता मनमाने ढंग से कार्य करते रहते हैं। विकास लिंडा महज एक उदाहरण है। उनकी लाश पर खेल करने वाले कब गिरफ्तार होंगे? कब उनसे जनता सीधे सवाल करेगी? आखिर किसी की जिम्मेदारी तो होगी या ऐसे ही दुर्घटना होती रहेगी? कब गिद्ध को गिद्ध कहेंगे और उसके दांत विकास लिंडा को चींथते रहेंगे?

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