प्रशांत किशोर ने बदला नारा, अँधेरे के अब तीन प्रकाश ही नहीं,बल्कि चार प्रकाश हो गए हैं?

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आज से लगभग पचास साल पहले एक नारा बहुत ही बुलंद था-अँधेरे के तीन प्रकाश ! गाँधी लोहिया जयप्रकाश !! बिहार में गूंजता वह नारा अब बदल गया है।अँधेरे के अब तीन प्रकाश ही नहीं,बल्कि चार प्रकाश हो गए हैं? इस नारे में नया नाम अब बाबासाहेब आंबेडकर का जुड़ गया है। बिहार की जम्हूरियत को जानदार बनाने के लिए अँधेरे के ये चार प्रकाश बनाने की कवायद प्रशांत किशोर की है। प्रशांत किशोर नए राजनीतिक उद्यमी हैं। सत्ता बाजार में इसके पोलिटिकल प्रोडक्ट कितनी खपत हो पाएगी,यह देखना अभी बाकी है।

अगले साल बिहार विधान सभा का चुनाव होना है। इस चुनाव में प्रशांत किशोर परदे के पीछे नहीं,बल्कि सियासी स्क्रीन पर स्वयं रोल निभाते नजर आएंगे। प्रशांत किशोर इस चुनाव में पॉलिटिकल-डेब्यू अवश्य कर रहे हैं लेकिन आगाज और खेल का अंदाज अच्छा है। बिहार का आने वाला चुनावी-मैच प्रशांत के राजनीतिक भविष्य को तय करेगा। जंग रोचक होगी। वैसे यहाँ घाघ सब बैठे हुए हैं। अंतिम अंतिम में क्या गुल खिलाएंगे कहना मुश्किल है.

बिहार के आगामी चुनाव में सबकुछ बदला बदला सा नजर आएगा। सभी खिलाड़ी नए होंगें। प्रशांत किशोर,तेजस्वी यादव,चिराग पासवान,मुकेश साहनी,संतोष सुमन,सम्राट चौधरी और मनीष वर्मा जैसे ये सभी नए युवा खिलाड़ी बिहार के सियासी पिच पर बैटिंग करते नजर आयेंगें।

खैर,तीन प्रकाश का नारा लगाने वाले वे सारे नेतृत्व आज निस्तेज और निष्प्राण हो गए हैं। ये लोग उम्र और राजनीति की अंतिम पारी ही खेल रहे हैं। समय बदल चुका है। सारी राजनीतिक परिस्थितियां भी बदल गयी हैं।अब राजनीति की ये नई पौध हमारे सामने है। इसी में बिहार को अब अपना भविष्य तलाशना होगा। कौन कितना कम जहरीला है,इसमें से ही आपको चुनाव करना है।
दुर्भाग्य से कोई ठोस समझ इस नेतृत्व के पास भी नहीं है। प्रशांत को छोड़ ये सभी नए चेहरे परिवार के बल पर या फिर अपने आका के बल पर ही इस पोलिटिकल फील्ड में खड़े हैं। इस नए नेतृत्व के सामने अतीत की धुंधली यादें ही शेष हैं। ये लोग बीती क्रांतियों की श्वेत श्याम स्मृतियाँ को अपने सम्भाषण में कोट अवश्य करते हैं पर उसे आज दोहराने की स्थिति में आज इसमें से कोई नहीं है।

बिहार के नए युवा-तुर्क प्रशांत किशोर देश और दुनिया को बदलने का सपना संजोये बिहार आये हैं। ये बिहारी अवश्य हैं पर काम इनका बिहार के बाहर ज्यादा रहा है। खेत-खलिहान हर जगह प्रशांत किशोर इन दिनों ख़ाक छानते नजर आ रहे हैं। जन सुराज अभियान से बड़ी संभावना दिख रही थी। प्रशांत के पास अभिव्यक्ति अवश्य थी पर स्वीकृति नहीं थी। जाति के सामने इनके जन और जनवाद का कोई महत्व नहीं था। प्रशांत किशोर कोई शुचितावादी भी नहीं हैं। केजरीवाल की तरह कोई पाखण्ड नहीं कर रहे हैं ?सत्ता में किसी तरह आ जाने की इनकी पहली प्राथमिकता है। इनके पास बिहार का अपना डायग्नोस है। इसी लिए प्रशांत किशोर बदले बदले से नजर आ रहे हैं। उन्होंने मुसलमानों को तरजीह देने की बात की। आज उन्होंने कहा कि जनसुराज का लागम अब मुसलमानों के हाथ में भी होगा। संचालन समिति में मुसलमानों की भागीदारी को प्रशांत किशोर सुनिश्चित कर रहे हैं।

मुसलमानों को जिस तरह से प्रशांत टारगेट कर रहे हैं इससे भाजपा की बी टीम होने की बात भी उठेगी। मुस्लिम मतों का विभाजन भाजपा की राजनीति को पुष्ट करेगी। भाजपा प्रशांत को एक मोहरा बना सकती है। प्रशांत ओबैसी का क्लोन साबित हो सकते हैं। हिंदुत्व को लेकर जिस तरह भाजपा आक्रामक है इसको देखते हुए बिहार के मुसलमान बिखरना नहीं चाहेंगें ? भाजपा को भी एक रेडीमेड नेता चाहिए। भाजपा के पास अभी कोई ऐसा नेता नहीं है जो बिहार को सर्वस्पर्शी नेतृत्व दे सके। प्रशांत भी जरुरत में है और भाजपा भी जरुरत में है। बिहार बदलने के नाम पर प्रशांत भाजपाई भी हो सकते हैं। राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता। भाजपा नहीं चाहेगी कि चिराग जैसा भस्मासुर आगे बढे। इनकी पहचान स्थापित हो चुकी है।केजरीवाल की क्रांति स्वराज से चलकर शराब तक पहुँच गयी ? प्रशांत का सुराज कहाँ जाकर रुकेगा इसपर कुछ लिखना जल्दीबाजी होगा। प्रशांत के पीछे की भीड़ का वर्गीय चरित्र क्या है इसे भी परखना होगा।

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