न्याय,न्यायालय और न्यायाधीश सभी चर्चा में हैं। ज्ञानवापी मंदिर में नमाज जारी रहेगा’ का फैसला भी आज की सुर्ख़ियों में है। याचिका दर याचिका की जारी जंग में आज कोर्ट का फैसला मुसलमानों के हित में आया। यह एक सुखद सूचना है। वैसे देश के ख़ास वर्ग खासे निराशा में थे कि सरकार के सभी अंग इनके प्रतिकूल हैं। इस बीच मोदी सरकार के बहुत सारे फैसले भी आये,पर कोर्ट की प्रभावी दखलंदाजी नहीं हो पायी। सारी व्यवस्थाएं बहुसंख्यक के लिए ही है,ऐसी आम धारणा बन रही थी,पर ज्ञानवापी मस्जिद/मंदिर को लेकर जो फैसला आया है यह भरोसा पैदा कर रहा कि क़ानून सबके लिए समान है।निश्चित रूप से कोर्ट की इस निष्पक्षता से न्याय-व्यवस्था पर आम जनों का भरोसा बहाल हुआ है। ‘पिंजरे का तोता’ जैसा बयान सीबीआई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दिया,यह भी अधिनायकवाद पर लगाम लगाने जैसा ही है। पिछले कुछ वर्षों में विपक्ष के नेताओं के खिलाफ अनगिनत षड्यंत्र किये गए। कोर्ट ने इन षड्यंत्रों को संज्ञान में लिया।कोर्ट से बहुत सारे नेताओं को जमानत मिली और जेल से बाहर आये। कविता,केजरीवाल,हेमंत,मनीष और संजय सिंह जैसे अनेकों नाम हैं जिन्हे कोर्ट ने राहत दी है।
कोर्ट ! कोर्ट !! कोर्ट !!! हर खबर में न्यायालय और न्यायाधीश ही छाये हुए हैं। केजरीवाल की जमानत तो खबर बनी ही,पर सबसे बड़ी खबर बन गयी है प्रधानमंत्री का चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया के घर जाना। कार्यक्रम था गणेश-पूजन का। यह इनका निजी कार्यक्रम था। यह खबर आरोप प्रत्यारोप से घिर गयी। यह सच है कि प्रधानमंत्री जबरदस्ती पुण्य लूटने तो गए नहीं होंगे? बिन बुलाये मेहमान की तरह मोदीजी मुख्य न्यायाधीश के यहाँ नहीं गए हैं । निश्चित ही मोदीजी को आमंत्रण मिला होगा। मोदी को बुलाना चाहिए या नहीं, या फिर मोदी को जाना चाहिए या नहीं ? इस पर बहस जारी है। अवकाशप्राप्त उच्च न्यायालय के जज रेखा शर्मा कहती हैं कि इस प्रकार के कार्यक्रम से बचने की जरूरत थी ? इससे गलत मैसेज जाएगा। जनता की धारणा जो कोर्ट को लेकर बन रही थी,वह ठहर जाएगी । अपराधी जो सजा का इंतजार कर रहे हैं उन्हें गहरी निराशा हो रही होगी। अन्य न्यायाधीशों ने भी इस घालमेल का जबरदस्त विरोध किया है। वाई बी चंद्रचूड़ जो चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया हैं को प्रधानमंत्री को आमंत्रित ही नहीं करना चाहिए था। यह कोड ऑफ़ कंडक्ट के खिलाफ है। यह सेपरेशन ऑफ़ पावर का भी उल्लंघन हैं। निश्चित रूप से यह मर्यादा तय की गयी थी कि न्यायाधीश को सामान्य नागरिक से अपने को दूर रखना है। यह भरोसा का प्रश्न है। कोई दाऊद या आतंकी लोगों का कहीं उठ बैठ होगा तो संदेह पैदा करेगा ही? सामान्य नागरिक का आना जाना उचित नहीं है। पर यहाँ तो दो संवैधानिक व्यक्ति हैं। हालाँकि इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। कोई न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित नहीं होगी। न्यायाधीश तो न्यायाधीश है। ये नीर क्षीर विवेक का ही फैसला करेंगे यह निश्चित है। किसी प्रधानमंत्री का किसी कार्यक्रम में न्यायाधीश के साथ होना कोई पहला मामला नहीं है। मनमोहन सिंह भी इफ्तार पार्टी में सीजेआई को बुलाते रहे हैं। इफ्तार कर सकते हैं तो गणेश वंदना क्यों नहीं ?खैर,कांग्रेस मौन है। फुटकर पार्टियों के फुटकर बयान आ रहे हैं। चुनाव आयुक्त की स्थिति भी आदेशपाल की हो गयी थी। आज भी चुनाव- क्रिया संदेह से मुक्त नहीं हुई है। ऐसा नहीं है कि न्यायाधीश किसी सेटिंग के शिकार नहीं हुए हैं। और अनुकूल फैसला देने का पुरूस्कार नहीं मिला है। इस देश में सबकुछ हुआ है। सीजेआई का भी रिटायरमेंट करीब है। कुछ भी संभव है। किसी भी शंका को ख़ारिज नहीं किया जा सकता है।
गणेश वंदना ही करना था तो मोदीजी को तो सीजेआई के यहाँ ही क्यों गए ? यह थोड़ा खटकता तो अवश्य है। और भी कहीं गणेश वंदना की जा सकती थी? शायद बड़े लोगों के गणेश जी, बड़े गणेश जी ही होते हैं? यहाँ मुकम्मल आशीर्वाद की गारंटी मिल सकती है? गणेश जी की पूजा करने किसी किसान के घर भी चले जाते? इससे देश को थोड़ा सन्देश मिलता कि मोदी जी वास्तव में महान हैं? रामरहीम को जिसने बार बार पेरोल दिया भाजपा को लाभ दिलाने के लिए उन्हें भाजपा का टिकट मिल गया है। ये हरियाणा में भाजपा के उम्मीदवार हो गए हैं ?पहले भी राज्य सभा का टिकट मिलता रहा है। गणपति बाप्पा मोरिया,देश में यही सब हो रिया।